मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

सदगुरु के चरणों में जन्म दिन की पूर्व संध्या पर गीत पुष्पांजलि

सदगुरु तेरी पूजा कैसे करूं ??

मै कविता कोई लिख न सकूं
मै कवि न कोई शायर हूँ
मेरी प्रेम की भाषा पढ़ लेना
तुम इतना तो समझदार हो !!

पुष्पांजलि करना था मुझको
मै माला कोई ला न सका
मेरा ह्रदय कमल तुम्हे अर्पित है
बस कह देना स्वीकार है !!

अभिसिंचन करना था मुझको
मै गंगाजल को ला न सका
असुवन से तर्पण करता हूँ
यह गंग जमुन की धार है !!

मुझे टीका तुम्हे लगाना था
न रोली है न कुमकुम है
तेरे चरणों का ऱज मेरा चन्दन है
तेरी करूणा अपरम्पार है !!

मुझे दीपक एक जलना था
मेरे तेल न मेरे बाती है
मेरा ह्रदय प्रकाशित कर देना
तुम सूरज चमकदार हो !!

मै माखन मिश्री ला न सका
मुझे तुमको भोग खिलाना था
तुम रोग भोग से ऊपर हो
तुम योगेश्वर सरकार हो !!

मै धागे कलावे क्या बांधू
तुम ध्यान सूत्र से बाँध गए
यह धागे तो उलझाते है
तेरे ध्यान सूत्र वेदान्त है !!

मुझे वेद कुरआन का ज्ञान नहीं
स्तुति अजान का भान नहीं
मेरे ह्रदय की वीणा सुन लेना
तुम स्रष्टि के झंकार हो !!

तुम बुद्ध और अरिहंत हो
तुम इश्वर परम अनंत हो
तुम ऊर्जा के भंडार हो
तुम वेद पुराणों के सार हो !!

हम गाते है तेरी आरती

हे ! अनंत पथ के सारथि
सभी बुद्धो से हमें मिलवा देना
बस इतनी मेरी पुकार है !!

(सदगुरु के चरणों में जन्म दिन की पूर्व संध्या पर गीत पुष्पांजलि )  
  " अनंत चैतन्य "
अनंत पथ का एक पथिक 


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

बहुरूपिया

सुना था
दीवारों के कान होते है
किन्तु,
आज उसे बोलते देखा है ,
बोली,
मै तो  अपना रंग
सालों बाद बदलती हूँ
पर तुम्हे हर पल
रंग बदलते देखती हूँ
अकेले में ,
तुम्हे कभी उदास
तो कभी ईश्वर के पास
कभी हँसते , कभी  रोते देखा है

तुम तो एक बहुरूपिया हो
मै ही हूँ जिसने तुम्हारे हर रूप को छिपाया है
मौसम में हवा पानी के थपेड़ो से बचाया है
हर खुशी व् ग़म को तुम्हारे साथ मैंने भी जिया है !!

अनंत चैतन्य
लखनऊ


















गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

कुछ  खास  दिल  काफी  नहीं , मेरे  बसर  के  लिए  सारे  जहाँ  के  दिलों  का  तू  इंतजाम  कर .. -- अनंत  चैतन्य
 

धूल के एक कण ने कहा..

धूल के एक कण ने कहा
मुझे देख
मै कभी पहाड़
..फिर चट्टान  बाद में कंकण
अब मात्र कण रह गयी हूँ
..और तेरे पैरों तले पडी हूँ
वक्त कभी किसी का न था
न हुआ है
तू संभल संभल कर चला कर
अस्तित्व जिधर भी ले जाए
उसी के साथ साथ बहा कर
--अनंत चैतन्य