मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

घनाक्षरी छंद
भगवान बुद्ध
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको  !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया  ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन  अशोक ने भी
देशना     प्रचार हेतु      दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को   !! 
----अनंत चैतन्य - लखनऊ -------


रौशनी की एक किरण को
बो दिया अंतःकरण में
वह बीज
बन गया है अब
चमकदार सूर्य
और जुड़ गया है
खुदा के नूर से .
अंतरतम के महाकाश में
वह महा प्रकाश
अलौकिक ऊर्जा लिए
प्रतिपल जगमगाता , झिलमिलाता
घट रहा है घट में
अनंत , चैतन्य पूर्ण जागरण
अब मुझे बाहर की रौशनी की क्या जरूरत
क्योकि
उसकी चमक में भटका हूँ जन्मो से
वाह्य चमक में सो गया था
हताश व् निराश ..
अब तो बस अंतर में
झर रहा है पुंज प्रकाश

----अनंत चैतन्य , लखनऊ ------