मंगलवार, 29 मई 2012

दुःख और सुख के घाटों से ,
यह जीवन नदिया बही जा रही !
इन घाटों पर ,
कुछ योगी है ध्यान लगाये !
कुछ मायावी जाल बिछाए !
नदिया को इनसे क्या लेना ,
प्रति पल प्रति छ्ण बही जा रही !!
जीवन नदिया बही जा रही !!

समय की धारा बस आगे की ओर खिसकती !
पीछे को यह लौट न सकती !
एक रस्ते पर कभी न बहती ,
कभी भटकती , कभी सिसकती ,
सीढ़ी बही ,तो कभी मचलती ,
इसका कोई बिस्तर है न कोई बिछौना ,
इसको तो रुकना न , न ही सोना !
मंजिल पर यह चली जा रही !
जीवन नदिया बही जा रही !!

जब भी यह धरती पर आई ,
यात्रा इसकी शुरू हो गयी ,
कुछ दिन माँ के पास रही फिर
आगे बढ़ी और , धीरे धीरे बड़ी हो गयी !
नित नित नूतन साथी आये ,
नव पथ पर कुछ पीछे छूटे ,
कुछ आये , और इसमें समाये ,
सबसे मिलना , इसके लिए बना खेल खिलौना ,
खुद से ही कहती रहती , अभी और चलो ना !!
आगे आगे चली जा रही !
जीवन नदिया बही जा रही !!

लय में बही तो बहुतों का उपकार हो गया ,
उग्र बही तो ,उधर बहुत संघार हो गया !
शांत बही तो , शीतल मंद बयार हो गया !
भंवर बनी तो कुण्डलिनी बन नृत्य कर गयी !
अपने मीठे जल से सबको तृप्ति कर गयी !
कल कल करती गीत सुनती बही जा रही !
जीवन नदिया बही जा रही !!

पर्वत से सागर तक उसका विस्तार है !
सागर का मुख नदिया का तो मृत्यु द्वार है !
मिली जो सागर से तो उसका नाम मिट गया ,
उसका झर झर बहना भी तो बंद हो गया !
पुनर्जन्म फिर फिर कर होगा ,
परिवर्तन केवल होता है
जीवन चक्र का सार यही है ,
प्रति पल प्रति छ्ण बदल रही है !!
जीवन नदिया बही जा रही !!
-----अनंत चैतन्य   लखनऊ ------

रविवार, 27 मई 2012

जीवन ज्योति बन जाऊं मै ..

जीवन ज्योति बन जाऊं मै ..

तम में ,
भटकते पथिक ,
मत हो व्यथित !
पथ पर आकर तेरे 
दीपक बन जाऊं मै .
रास्ता दिखलाऊँ  मै 
सूत्र फिर से "आपो दीपो भव् " का 
फिर से सिखलाऊँ मै !
जीवन ज्योति बन जाऊं मै  !!

हर किसी के  पास  फिर से ,
विरह जन्य  गोपियो से 
ताप सब 
संताप  सब 
वृन्दावन का महा रास बन 
नृत्य सिखलाऊँ  मै 
हास परिहास बन कर 
फिर से हसाऊँ मै  !
जीवन ज्योति बन जाऊं मै  !!

तेरी बगिया  में आकर 
कोयल की कूँ कूँ और 
भौरों  का गुंजन बन 
फुनगी से फुनगी तक 
उन्मुक्त पक्षी  बन ,
उड़ना सिखलाऊँ मै !
जीवन ज्योति बन जाऊं मै !!

आओ मेरे पास मित्रों ,
मत हो उदास मित्रो 
ह्रदय की ज्वाला से 
भभकते हुए शोलों को 
करुना की धारा बन 
नयनों में आंसूं बन 
शीतल कर जाऊं मै  !
जीवन ज्योति बन जाऊं मै !!

 ***** अनंत चैतन्य - लखनऊ  *****

बुधवार, 16 मई 2012

<< लिख ले तकदीर खुद की , खुद की ही कलम से >>

          

         << लिख ले तकदीर खुद की , खुद की ही कलम से >>

वह कौन है , जो तेरी  तकदीर लिख गया है !
तेरे  ही अपने कर्म थे या फिर तेरा  खुदा है !!
जब कर्म की कमाई है ,फिर  गिला शिकवा क्यों ?
भर ले उड़ान ऊंची , ये सारा जहाँ  खुला है  !!

कभी हाथ पसारो न किसी गैर के आगे !
अपने भी मुट्ठी भर ही है ,और तंग है सारे !!
संतान है खुदा की , सारी सल्तनत तेरी !
बाहों में भरले , तेरे ही है ये चाँद सितारे !!

मौसम का इन्तजार कर ,मिल जाएगा सब कुछ !
पतझर  है अगर आज तो , बसंत है कल से !!
अपनी जमी को पकड़ रख, बट वृक्ष की तरह !
लौटेगी फिजा फिर से जब , लद जाएगा फल से  !!



                                                                      ---अनंत चैतन्य -लखनऊ !!