बुधवार, 30 मई 2018

मै अलमस्त फ़कीर

कब सोना है , कब रोना है 
जिसको कोई फिक्र नहीं ,
कैसे दिन और राते गुजरे 
कभी किसी से जिक्र नहीं ॥
मै तो एक फ़कीर ....

मनमौजी हूँ , कब गाऊँगा 
कब नाचूंगा , कब खाऊँगा ,
मै जानूँ , न जानें दूजा 
प्यार , मुहब्बत मेरी पूजा ॥ 
मै अलमस्त  फ़कीर ....

माया मोह के , बंधन झूठे
धन दौलत , परिवार से छूटे,
फटी लंगोटी , मैला कुर्ता 
नंग धड़ंगा , कोई न चिंता ॥ 
मै मदमस्त फकीर .....

न जाने कोई मौज हमारी
शहंशाह सी शान हमारी 
पत्थर हूँ लख कोटि हजारी
है दुनिया मेरी ही सारी ॥ 
मै सूफी संत फ़कीर .......

मंदिर मे कभी सुबह गुजारी 
शाम कभी मस्जिद मे बीती ,
ओढ़ के चादर , आसमान की 
धरती पर ही निद्रा टूटी ॥ 
मै अल्हड़ मस्त फ़कीर ..............

-- श्रवण कुमार मिश्र -- 

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