भाव के समुंदर से
विचारों की लहरों पर चढ कर
अाई कुछ
निर्दोष सी
प्रज्ञा की बूंदे
विखर गई
चेतना की रेत में
चांद ने चुरा लिया
पिरो दिया
विश्वास के धागे में
बना दिया
श्रृद्धा की माला
जब उस माला को
पहन लेता हूं
जुड़ जाता हूं
विराट से
अनंत से ....
पं. श्रवण कुमार मिश्र
विचारों की लहरों पर चढ कर
अाई कुछ
निर्दोष सी
प्रज्ञा की बूंदे
विखर गई
चेतना की रेत में
चांद ने चुरा लिया
पिरो दिया
विश्वास के धागे में
बना दिया
श्रृद्धा की माला
जब उस माला को
पहन लेता हूं
जुड़ जाता हूं
विराट से
अनंत से ....
पं. श्रवण कुमार मिश्र
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