शनिवार, 26 मई 2018

हरे हरे तरु कटे , हेरि हेरि ठेके बटे l
छटे छटे गुंडन से, हो रहा विकास है ll
गाँव गाँव वृक्ष घटे ,कुछ कटे कुछ छटे l
अरे अरे मूढ़ मते ,यही तो विनाश है l
पड़े पड़े सोच नही मेरी तेरी बात नही l
आने वाली पीढियों को पूर्वजों सेआस है l
पांच पांच वृक्ष लगे ,एक एक व्यक्ति जगे
मित्र वृक्ष को बनाओ, ये खासमखास है ll
मारा जाता पत्थरों से करे प्रतिकार नही l
बदले में फल देता आपा नही खोता है ll
आरों से बदन कटे डाल पात सब छटे l
जड़ मूल नष्ट तो भी कभी नही रोता है ll
मरके भी काम आता चिता भी वही जलाता l
खाट चारपाई पर सारा जग सोता है l
धूप में भी छाया देता द्वार बन खड़ा होता
फिर भी क्यों वृक्षों पर अत्याचार होता है ll
.......श्रवण कुमार मिश्र लखनऊ ...........

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