ऋतुराज बसंत
~~~~~~~~श्रृगार रस की अवधी कविता~~~~~~~~
(एक साधक की पीड़ा, ईश्वर मिलन हेतु)
(एक प्रेयसी की पीड़ा, बसंत ऋतु में जिसका प्रियतम दूर है )
आयो रे ! सखि आयो रे !!
ऋतु राज बसंती आयो रे !!
चटख पलास खिले यौवन में,मस्त मदन मद छायो रे !!
नव तरु पल्लव वन उपवन बिच,बेलि ब्रक्ष लिपटायो रे !!
रस पराग का चाखत मधुकर, पशु,पक्षी बौराये रे !!
बौर आम्रपाली, अति शोभित, मलय पवन हर्षायो रे !!
क्रीडा रत रति कामदेव संगं में नृत्य प्रकृति दिखरायो रे !!
चहुँ दिश ऐसी मद मस्ती है, वर्णन मुख नहि आवे रे !!
रोम रोम मोरो फरकि रहो है , फगुआ अगनि लगावे रे !!
केहि से कहूँ दुख आपन सखि मोरि हमे कछु नहीं भावे रे !!
मोरे पिया बसे दूर देश में, उनको कोई बुलावे रे !!
~~~~~~~~~~~अनन्त चैतन्य - लखनऊ ~~~~~~~~~
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