मै अलमस्त फ़कीर
कब सोना है , कब रोना है
जिसको कोई फिक्र नहीं ,
कैसे दिन और राते गुजरे
कभी किसी से जिक्र नहीं ॥
मै तो एक फ़कीर ....
मनमौजी हूँ , कब गाऊँगा
कब नाचूंगा , कब खाऊँगा ,
मै जानूँ , न जानें दूजा
प्यार , मुहब्बत मेरी पूजा ॥
मै अलमस्त फ़कीर ....
माया मोह के , बंधन झूठे
धन दौलत , परिवार से छूटे,
फटी लंगोटी , मैला कुर्ता
नंग धड़ंगा , कोई न चिंता ॥
मै मदमस्त फकीर .....
न जाने कोई मौज हमारी
शहंशाह सी शान हमारी
पत्थर हूँ लख कोटि हजारी
है दुनिया मेरी ही सारी ॥
मै सूफी संत फ़कीर .......
मंदिर मे कभी सुबह गुजारी
शाम कभी मस्जिद मे बीती ,
ओढ़ के चादर , आसमान की
धरती पर ही निद्रा टूटी ॥
मै अल्हड़ मस्त फ़कीर ..............
-- श्रवण कुमार मिश्र --