शनिवार, 17 अगस्त 2019

भाव के समुंदर से
विचारों की लहरों पर चढ कर
अाई कुछ
निर्दोष सी
प्रज्ञा की बूंदे
विखर गई
चेतना की रेत में
चांद ने चुरा लिया
पिरो दिया
विश्वास के धागे में
बना दिया
श्रृद्धा की माला
जब उस माला को
पहन लेता हूं
जुड़ जाता हूं
विराट से
अनंत से ....

पं. श्रवण कुमार मिश्र

बुधवार, 30 मई 2018

मै अलमस्त फ़कीर

कब सोना है , कब रोना है 
जिसको कोई फिक्र नहीं ,
कैसे दिन और राते गुजरे 
कभी किसी से जिक्र नहीं ॥
मै तो एक फ़कीर ....

मनमौजी हूँ , कब गाऊँगा 
कब नाचूंगा , कब खाऊँगा ,
मै जानूँ , न जानें दूजा 
प्यार , मुहब्बत मेरी पूजा ॥ 
मै अलमस्त  फ़कीर ....

माया मोह के , बंधन झूठे
धन दौलत , परिवार से छूटे,
फटी लंगोटी , मैला कुर्ता 
नंग धड़ंगा , कोई न चिंता ॥ 
मै मदमस्त फकीर .....

न जाने कोई मौज हमारी
शहंशाह सी शान हमारी 
पत्थर हूँ लख कोटि हजारी
है दुनिया मेरी ही सारी ॥ 
मै सूफी संत फ़कीर .......

मंदिर मे कभी सुबह गुजारी 
शाम कभी मस्जिद मे बीती ,
ओढ़ के चादर , आसमान की 
धरती पर ही निद्रा टूटी ॥ 
मै अल्हड़ मस्त फ़कीर ..............

-- श्रवण कुमार मिश्र -- 

शनिवार, 26 मई 2018

कवि !
क्या लिख सकते हो ??
बारिस की बूंदों की टप टप
उन मस्त हवाओं की सर सर 
झरनों की ध्वनियों की सरगम
स्पंदन , ह्रदय तंतु धड़कन !!
यह शब्द नहीं संगीत है .....
क्या लिख सकते हो ??
शिव डमरू के डम डम का नाद
शिव शिवi के मध्य घटा संवाद
काली का गर्जन
भैरव का नर्तन
उस परब्रम्ह परमात्मा के
पूरी श्रृष्टि का चित्रण
उस महा सूर्य का ताप
और उस पूर्ण चन्द्र के
किरणों का शीतल प्रकाश !!
यह शब्द नहीं यह ऊर्जा है ....
क्या लिख सकते हो ???
एक माँ की ममता की पुकार
उस फटे हाल अबला की लाज
प्रेमी के ह्रदय से उठी पीर
दुखिया के आंसूं की आवाज़ !!
यह भाव है कोई शब्द नहीं ......
क्या लिख सकते हो ???
कवि क्या लिख सकते हो ????
..श्रवण कुमार मिश्र ...
वसंत पर्व पर माँ के चरणों मे काव्यांजली
माँ मुझे वरदान देना......
कर सकूँ आराधना माँ 
विद्या,बुद्धि व ज्ञान देना
माँ मुझे वरदान देना......
प्रार्थना कैसे करें हम
स्वर,सुरों का भान देना
माँ मुझे वरदान देना......
हंस वाहिनि , ज्ञान दायिनि
संवेदना , विस्तार देना
माँ मुझे वरदान देना......
आत्म संयम ,प्रखरता हो
मृदुल ,निश्छल भाव देना
माँ मुझे वरदान देना......
अलंकृत , माँ लेखनी हो
रस ,छंद ,काव्य,प्रवाह देना
माँ मुझे वरदान देना......
--श्रवण कुमार मिश्र ---
एक प्रश्न
प्रेम क्या है ?
दो शब्दों का मिलन
दो आत्माओं का मिलन
दो देह का मिलन
या
लौकिकता से परे
विश्वास का एक मूर्त रूप !.....
कहते हैं ..
प्रेम इश्वर है ,प्रेम साधना है
प्रेम इबादत है ,प्रेम भक्ति है
प्रेम आस्था है ..
प्रेम में है ये सब
तो ..
क्यों प्रेम अलग हो जाता है
प्रेम से .!
हरे हरे तरु कटे , हेरि हेरि ठेके बटे l
छटे छटे गुंडन से, हो रहा विकास है ll
गाँव गाँव वृक्ष घटे ,कुछ कटे कुछ छटे l
अरे अरे मूढ़ मते ,यही तो विनाश है l
पड़े पड़े सोच नही मेरी तेरी बात नही l
आने वाली पीढियों को पूर्वजों सेआस है l
पांच पांच वृक्ष लगे ,एक एक व्यक्ति जगे
मित्र वृक्ष को बनाओ, ये खासमखास है ll
मारा जाता पत्थरों से करे प्रतिकार नही l
बदले में फल देता आपा नही खोता है ll
आरों से बदन कटे डाल पात सब छटे l
जड़ मूल नष्ट तो भी कभी नही रोता है ll
मरके भी काम आता चिता भी वही जलाता l
खाट चारपाई पर सारा जग सोता है l
धूप में भी छाया देता द्वार बन खड़ा होता
फिर भी क्यों वृक्षों पर अत्याचार होता है ll
.......श्रवण कुमार मिश्र लखनऊ ...........

गुरुवार, 5 जून 2014

आशा की ओर..........

आ गयी है सुबह जैसी ताजगी फिर
आस की किरणे पुनः जागने लगी है
तुम मिले तो प्राणमय जीवन खिला है
पीर भी अब पिघल कर बहने लगी है !!१!!

बीज फिर से अंकुरित होने लगा है
ओस ने स्पर्श से फिर गुदगुदाया
चहचहाते पंछियों की ऋतु बसंती
कर्णप्रिय एक गीत फिर से गुनगुनाया !!२!!

वक्त के इन चंद से लम्हों को ले लूँ
गूंथ कर माला में पहनूं उम्र भर तक
निकल आया हूँ निराशा की घडी से
रोशनी में डूब जाऊँगा मै सिर तक !!३!!

मन की लहरे उठती गिरती रहती  नित पल
गति हमेशा आगे को चलना  सिखाये
कौन कब तक साक्षी बन कर देखे इनको
समय की धरा को यह आगे बढ़ाये !! ४ !!

----श्रवण कुमार मिश्रा -----
------लखनऊ ------