सोमवार, 1 अक्तूबर 2012


----कभी उड़ लो ख्वाब के पंखो के साथ -----

मत कहो , हम थक गए है !
अभी तो कुछ पग चले है !!
थको , उठो , फिर चलो चलते रहो !
जल की धारा की तरह बहते रहो !!
पक्षियों को देखो , कैसे उड़ रहे !
फूल भी हसकर तुम्हे कुछ कह रहे !!
ऊबड़ खाबड़ रेत के है रास्ते !
चलने से घटते , हमेशा फासले  !!
मंजिल तक पहुचेंगे ही , कहते रहो ....
जल की धारा की तरह बहते रहो !!

कभी धरती हो  बिछौना ,
कभी अम्बर ही हो चादर !
फल मिलेंगे वृक्षों से और
छतरी बन जायेंगे बादल  !!
कभी उड़ लो ख्वाब के पंखो के साथ ,
आत्म दीपक को जलना , जब भी आये काली रात !
लक्ष्य से भटको नहीं !
कही भी अटको नहीं !!
चल पड़ो चलते रहो ......
जल की धारा की तरह बहते रहो !!

---स्वामी अनंत चैतन्य -- लखनऊ ----

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