सोमवार, 31 दिसंबर 2012


((सद गुरु श्री    "अनंत श्री "  के जन्म दिवस  पर चरणों में एक पुष्पांजलि ))

मेरे अन्दर जब था तू
मधुबन के बसंत सा था तू
मन मंदिर में ध्यान लगाकर
देखा तो अनंत सा तू  !!

ह्रदय की गहराई में उतरा
पूनम के चन्द सा तू
साधक की आँखों से देखा
सद् गुरु , गुरु गोविंदा था तू  !!

अनहद नाद को सुना तो पाया
सुरों की सप्त लहरियों सा तू
उषा काल की ओस में झांका
निर्दोष चमकती लड़ियों सा तू  !!

पूर्व काल इतिहास को बांचा
महावीर बुद्धा सा तू
गिरि  कन्दरा गुफा में पाया
पूर्ण पुरुष सिद्धा सा था तू  !!

मन मस्तिष्क में घुस कर देखा
प्रखर पुंज प्रज्ञा सा तू
राज ऋषि  के अनुशासन का
ऐतिहासिक राजाज्ञा  था तू !!

यह  सब क्यों था
यह सब क्या था
तू जाने या खुदा जाने
 मै  तो बस इतना जानूं  कि ,
गूँगे के गुड़  जैसा था  तू  !!
मेरे अन्दर  जब जब था तू .......

---अनंत चैतन्य - लखनऊ ----

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें