मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

रौशनी की एक किरण को
बो दिया अंतःकरण में
वह बीज
बन गया है अब
चमकदार सूर्य
और जुड़ गया है
खुदा के नूर से .
अंतरतम के महाकाश में
वह महा प्रकाश
अलौकिक ऊर्जा लिए
प्रतिपल जगमगाता , झिलमिलाता
घट रहा है घट में
अनंत , चैतन्य पूर्ण जागरण
अब मुझे बाहर की रौशनी की क्या जरूरत
क्योकि
उसकी चमक में भटका हूँ जन्मो से
वाह्य चमक में सो गया था
हताश व् निराश ..
अब तो बस अंतर में
झर रहा है पुंज प्रकाश

----अनंत चैतन्य , लखनऊ ------

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