रौशनी की एक किरण को
बो दिया अंतःकरण में
वह बीज
बन गया है अब
चमकदार सूर्य
और जुड़ गया है
खुदा के नूर से .
अंतरतम के महाकाश में
वह महा प्रकाश
अलौकिक ऊर्जा लिए
प्रतिपल जगमगाता , झिलमिलाता
घट रहा है घट में
अनंत , चैतन्य पूर्ण जागरण
अब मुझे बाहर की रौशनी की क्या जरूरत
क्योकि
उसकी चमक में भटका हूँ जन्मो से
वाह्य चमक में सो गया था
हताश व् निराश ..
अब तो बस अंतर में
झर रहा है पुंज प्रकाश
----अनंत चैतन्य , लखनऊ ------
बो दिया अंतःकरण में
वह बीज
बन गया है अब
चमकदार सूर्य
और जुड़ गया है
खुदा के नूर से .
अंतरतम के महाकाश में
वह महा प्रकाश
अलौकिक ऊर्जा लिए
प्रतिपल जगमगाता , झिलमिलाता
घट रहा है घट में
अनंत , चैतन्य पूर्ण जागरण
अब मुझे बाहर की रौशनी की क्या जरूरत
क्योकि
उसकी चमक में भटका हूँ जन्मो से
वाह्य चमक में सो गया था
हताश व् निराश ..
अब तो बस अंतर में
झर रहा है पुंज प्रकाश
----अनंत चैतन्य , लखनऊ ------
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