--- मै फूल हूँ----
मै फूल हूँमेरे कुछ सपने है
एक प्रेमी है
चुपके से आता है
आलिंगन कर मेरी आत्मा की सुगंध को
चुरा ले जाता है
विखेर देता है
गलियों , आगन , और घर घर में
किन्तु लोगों को मेरा खिलना रास न आता है
जीने क्यों मुझे जीने नही देते है ?
पूजा में , प्यार में
श्रंगार में , हार में
व्यौहार में , त्यौहार में
असमय ही मौत के घाट उतार देते है
जीने क्यों मुझे जीने नही देते है ?
गमलो से
गलियों से
बाग़ व् बगीचों से
प्यार भरी नजरों से
बस देखने के सिवा मेरा क्या दोष ?
चाँद पैसों के लिए धर्म के दरवाजों पर
अधर्मी बन बेच देते है ..
जीने क्यों मुझे जीने नही देते है ?
अपनी खुशियों के लिए
तोड़ने से पहले
मेरी गर्दन मरोड़ने से पहले
एक बार रुको..सोचो..प्यार से देखो..
जीयों और जीने दो !!
--अनंत चैतन्य - लखनऊ ---