गोपियों की चीर हरने वाले श्याम !!
तुम कब आओगे ?
मेरे भी वस्त्र चुराओगे ??
निशा रुपी सरोवर में
निद्रा स्नान करते समय
काम क्रोध मद लोभ में रगें, सिले मेरे कपडे
जो छिपा देता हूँ अपनी ही काया में
और सुबह नींद से बाहर आकर
अहंकारी अंगडाईयों के साथ
पहन लेता हूँ हरदिन
उन्हें कब चुरावोगे ,
बोलो , तुम मेरे वस्त्र कब चुरावोगे
कब मुझे उस बाल रूप
वस्त्र विहीन
मूल स्वरुप से मिलाओगे ,
हे घनश्याम !!
बोलो मेरे वस्त्र कब चुराओगे
चीर हरो घनश्याम , हमारी पीर हरो !!
-----अनंत चैतन्य - लखनऊ -----
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