शनिवार, 14 जनवरी 2012

बूँद हूँ और सिन्धु भी हूँ मै !!

बूँद हूँ और सिन्धु भी हूँ मै !!

 ईश्वर की कृति हूँ
योगी और यती हूँ 
ब्रम्ह और ब्रम्हांड मुझ में
काम भी , और रति भी हूँ मै !!

सूर्य का प्रकाश मुझ में
धरती और आकाश मुझ में
शून्य भी विराट भी मै
भिक्षु भी , सम्राट भी हूँ मै !!

बाहर अनंत आकाश
अन्दर में चिदाकाश
शिव के डमरू का नाद
बूँद भी और सिन्धु भी हूँ  मै !!

वेदों का गान भी मै
शिव का विष पान भी मै
गरल भी मै अमृत भी
अनहद  नाद बिंदु भी हूँ मै !!

वृन्दावन का रास भी मै
सृष्टि और विनाश भी मै
दूर भी और पास भी मै
ईशा भी और क्रास भी हूँ मै !!

ओस की एक बूँद हूँ मै
घंटों की गूँज हूँ मै
चंडी का हुंकार हूँ मै
अणु भी पहाड़ भी हूँ  मै !!

बर्फ भी और आग भी मै
शान्ति और राग भी मै
भोग भी और त्याग भी मै
रोग भी और भेषज भी हूँ मै !!

शिशु भी और वृद्ध भी
जीवन भी और मृत्यु भी
दिन भी और रात भी
तारे और प्रकाश भी हूँ मै  !!

शव भी और शिव भी मै
जड़ भी और चेतन भी
तृप्ति भी और प्यास भी मै
जीव भी और ईश्वर भी हूँ मै !!

~~~~अनंत चैतन्य , लखनऊ ~~~~
(मकर संक्रांति १५-०१-२०१२ पर उतरी  एक कविता )








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