शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

श्रद्धा की मोतियाँ

भाव के सागर से 
विचारों की लहरों पर चढ़ कर
आयीं कुछ निर्दोष सी
प्रज्ञा की सीपें   
नक्षत्र स्वाति की बेला में
चेतना की कुछ बूँदें पाते ही 
बन गयी श्रद्धा की मोतियाँ 
कोमल हाथों से 
हलके से बटोर ली मैंने 
पिरो लिया विश्वास के धागे में 
सदगुरु के हाथ का जादुई स्पर्श पाते ही 
जुड़ गयी विराट से , अनंत से ,
फिर पहन ली गलें में 
ह्रदय  से लगाके
सुधबुध भुलाके !!

~~~~~अनंत चैतन्य , लखनऊ ~~~~~~~~




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