बुधवार, 18 जनवरी 2012

जलधार में बहता हुआ पत्ता

 जलधार में बहता हुआ पत्ता 

बीच मझधार में
सर्व स्वीकार में
समय के साथ साथ 
अस्तित्व का पकड़ हाथ
बहता ही जा रहा हूँ 
निर्भार हो , गीत गुनगुना रहा हूँ !!

कितने ही 
गर्वीले 
हठीले
भारी भरकम बृक्ष 
पड़े है डूबे हुए 
दरिया में नीचे 
मुझ से बहुत पीछे !!


मुझे देखो
समय की धाराओं पर
नृत्य करता हुआ
कुलाचे भरता हुआ
निकल आया बहुत दूर तक...
..जब साख से टूटा था तब भी कोई न था विरोध 
आज भी समय के साथ यात्रा में कोई नही है  अवरोध !!

  ~~~~~~~~अनंत चैतन्य , लखनऊ ~~~~~~~~~

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