सोमवार, 16 जनवरी 2012

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

 प्रतीक्षा में तेरी
राह तकते हुए
थक गए नैना मेरे !
तुम्हे याद है की नहीं
पर मै, अभी  तक
उस मिलन के आह्लाद को ,
भूल नहीं पाया हूँ !
एक एक पल , विद्यमान अभी  स्मृति  में
हृदय में उठी दाह को शांत किया था तू ने
झर झर बरसाया था
दयामयी धारा को !!
तन मन सब भीज गया था मेरा
करुणा घन की अखंड अलौकिक दिव्यता की फुहार से !!
मेरी अखियाँ के पलकों के कपाटों से भी
निकल पड़ी थी एक अश्रु माला
जाकर गिरी थी
तेरे चरणों की रज पर !
उस महा निशा और आज के निशा  के बीच
बीच गयी कितनी ही
तम व् क्रंदन भरी रातें !
मेरे विरह  की परीक्षा
अब न लो माते !!
आ जाओ ..
मंगलमयी , अखंड आशा के दीप में घृत बन के
 ह्रदय की वीणा के ढीले हुए तारों को
फिर से कस दो माते  !
पुनः झंकृत हो जाए रोम रोम
ध्वनित तेरे स्वर से !!
फिर फिर वाही करूणा कृपा बरसे !!

~~~~~~~अनंत चैतन्य - लखनऊ ~~~~~~~



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