ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒ तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम् भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
मंगलवार, 30 अप्रैल 2013
प्रार्थनाएं
ह्रदय से उठी पुकार , आर्त हुई !
द्रवित हुई ,संघनित हो , पिघल गई !!
शब्द आंसुओं के साथ साथ बहे !
कर्मकांड दूर खड़े , वहीं ढहे !!
आंतरिक सरोवर का जलज खिला !
परम तत्व आत्म तत्व साथ मिला!!
वैर भाव ओझिल हो दूर बहा !
द्वेष व् दुर्भावना का होश कहा !!
विश्व का बंधुत्व भाव गले लगा !
करुणा का झरना भी उठा जगा !!
आत्म बल उत्कर्षित , हर्षित हो !
दयामयी अभिलाषा पुलकित हो !!
जीवन की ज्योति ऊर्जित प्रखर हुई !
आत्मा भी पोषित हो मुखर हुई !!
नित नूतन प्रेममयी शुभता जगी !
प्राथनाएं मन मंदिर होने लगी !!
*******अनंत चैतन्य - लखनऊ ********
ह्रदय से उठी पुकार , आर्त हुई !
द्रवित हुई ,संघनित हो , पिघल गई !!
शब्द आंसुओं के साथ साथ बहे !
कर्मकांड दूर खड़े , वहीं ढहे !!
आंतरिक सरोवर का जलज खिला !
परम तत्व आत्म तत्व साथ मिला!!
वैर भाव ओझिल हो दूर बहा !
द्वेष व् दुर्भावना का होश कहा !!
विश्व का बंधुत्व भाव गले लगा !
करुणा का झरना भी उठा जगा !!
आत्म बल उत्कर्षित , हर्षित हो !
दयामयी अभिलाषा पुलकित हो !!
जीवन की ज्योति ऊर्जित प्रखर हुई !
आत्मा भी पोषित हो मुखर हुई !!
नित नूतन प्रेममयी शुभता जगी !
प्राथनाएं मन मंदिर होने लगी !!
*******अनंत चैतन्य - लखनऊ ********
सोमवार, 29 अप्रैल 2013
--------एक पत्र रूठे मित्र के नाम --------
हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!
रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे क़दमों में रहता सारा जहाँ !!
भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा तंदुरुस्त रहो !!
गाल फुलाए क्यों बैठे हो गले मिलो !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!
ऐठन रस्सी जैसी , तन पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!
मित्र महान है , सबसे बड़ी अमानत है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है !!
मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे !!
दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों में ज्यो रंग घुले हो घुल मिल के !!
मित्र सुदामा , जैसे थे , घनश्याम के !
कर्ण दुर्योधन , मीत विभीषण राम के !!
मित्र शाश्वत बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से अब कुछ तो पिघलो !!
---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----
हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!
रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे क़दमों में रहता सारा जहाँ !!
भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा तंदुरुस्त रहो !!
गाल फुलाए क्यों बैठे हो गले मिलो !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!
ऐठन रस्सी जैसी , तन पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!
मित्र महान है , सबसे बड़ी अमानत है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है !!
मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे !!
दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों में ज्यो रंग घुले हो घुल मिल के !!
मित्र सुदामा , जैसे थे , घनश्याम के !
कर्ण दुर्योधन , मीत विभीषण राम के !!
मित्र शाश्वत बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से अब कुछ तो पिघलो !!
---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----
रविवार, 28 अप्रैल 2013
-----बुद्धं शरणम गच्छामि ----
``````````घनाक्षरी छंद````````````
( एक )
श्रेष्ठ द्वीप जम्बू द्वीप , मध्य में विशाल राज्य ,
कपिल वस्तु ,लुम्बनी है , नेपाल देश में !!
महारानी महामाया , महाराज सुद्धोदन
जन्मा है एक सुत , तेजोमयि निवेष में !!
नाम सिद्धार्थ श्रेष्ठ , ग्रह नक्षत्र अनुकूल ,
चक्रवर्ती योगाधीश , घुघराले केश में !!
यशोधरा संग हुआ , पाणिग्रहण संस्कार ,
सुत जन्म राहुल सा , सुन्दर सुवेश में !!
(दो )
राज पथ बीच देखा एक दिन विश्मित हो ,
मृत , वृद्ध , दुखी , रोगी , पड़े पशोपेश में !!
काया सूखी जीर्ण शीर्ण दुःख से दुखी मलिन ,
मानवता रहती क्यों ? कष्ट व क्लेश में !!
मन में वैराग्य उठा , चिंतन का भाव उगा
राजगृह त्यागा , गए घने वन देश में !!
फ़लगु नदी के तीर , रम गए बुद्धि धीर,
करते तपस्या बुद्ध , भिक्षुक के वेश में !!
( तीन )
हिन्दुवों में सबसे महान बुद्धिमान हुए
बुद्ध के शरण में सभी को जाना चाहिए !!
व्रत तप जप कर्मकांड से विमुक्ति नहीं
बुद्ध ने दिया जो ज्ञान अपनानाना चाहिए !!
चार आर्य सत्य है ,बताया समझाया ठीक
दुःख क्या है ?क्यों है? समझ आना चाहिए !!
भव पार कैसे करे , क्या है निर्वाण मार्ग
निज प्राण तत्त्व को , यही सुझाना चाहिए !!
( चार )
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन अशोक ने भी
देशना प्रचार हेतु दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को !!
----अनंत चैतन्य - लखनऊ ------
``````````घनाक्षरी छंद````````````
( एक )
श्रेष्ठ द्वीप जम्बू द्वीप , मध्य में विशाल राज्य ,
कपिल वस्तु ,लुम्बनी है , नेपाल देश में !!
महारानी महामाया , महाराज सुद्धोदन
जन्मा है एक सुत , तेजोमयि निवेष में !!
नाम सिद्धार्थ श्रेष्ठ , ग्रह नक्षत्र अनुकूल ,
चक्रवर्ती योगाधीश , घुघराले केश में !!
यशोधरा संग हुआ , पाणिग्रहण संस्कार ,
सुत जन्म राहुल सा , सुन्दर सुवेश में !!
(दो )
राज पथ बीच देखा एक दिन विश्मित हो ,
मृत , वृद्ध , दुखी , रोगी , पड़े पशोपेश में !!
काया सूखी जीर्ण शीर्ण दुःख से दुखी मलिन ,
मानवता रहती क्यों ? कष्ट व क्लेश में !!
मन में वैराग्य उठा , चिंतन का भाव उगा
राजगृह त्यागा , गए घने वन देश में !!
फ़लगु नदी के तीर , रम गए बुद्धि धीर,
करते तपस्या बुद्ध , भिक्षुक के वेश में !!
( तीन )
हिन्दुवों में सबसे महान बुद्धिमान हुए
बुद्ध के शरण में सभी को जाना चाहिए !!
व्रत तप जप कर्मकांड से विमुक्ति नहीं
बुद्ध ने दिया जो ज्ञान अपनानाना चाहिए !!
चार आर्य सत्य है ,बताया समझाया ठीक
दुःख क्या है ?क्यों है? समझ आना चाहिए !!
भव पार कैसे करे , क्या है निर्वाण मार्ग
निज प्राण तत्त्व को , यही सुझाना चाहिए !!
( चार )
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन अशोक ने भी
देशना प्रचार हेतु दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को !!
----अनंत चैतन्य - लखनऊ ------
--------------कृपा----------------
``````````घनाक्षरी छंद````````````
पानी है कृपा तो निज भावनाए शुद्ध रहे ,
सुचिता पवित्रता को नित अपनाना है !!
मनमानी व नादानी , छोड़ के सरल बने ,
भाव उपकारी हो , शपथ यह खाना है !!
प्रज्ञा युत चेतना , प्रखरता हो सविता सी ,
साधना में रत रहे , तिमिर मिटाना है !!
सेवा भाव कर्म बने , सृष्टी के सहायक हो
सतत आराधना का बीड़ा भी उठाना है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ---
``````````घनाक्षरी छंद````````````
पानी है कृपा तो निज भावनाए शुद्ध रहे ,
सुचिता पवित्रता को नित अपनाना है !!
मनमानी व नादानी , छोड़ के सरल बने ,
भाव उपकारी हो , शपथ यह खाना है !!
प्रज्ञा युत चेतना , प्रखरता हो सविता सी ,
साधना में रत रहे , तिमिर मिटाना है !!
सेवा भाव कर्म बने , सृष्टी के सहायक हो
सतत आराधना का बीड़ा भी उठाना है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ---
सोमवार, 15 अप्रैल 2013
केवट राम संवाद
( छंद )
गंगा जी के घाट खड़ा , जिद पे निषाद अडा !
बोलता है कड़ा कड़ा , पार न उतारूंगा !!
जनता हूँ भली भांति , जादूगरी में है ख्याति !
केवट की मेरी जाति , पाँव ही पखारूँगा !!
कोई तकरार न है , पाँव दो पखारना है... !
यदि शर्त माने प्रभु , बात नही टारूगा !!
बात सुन हसें राम जैसा चाहे करे काम !
मानता हूँ शर्त लाओ , पानी पैर डालूँगा !!
***********
काठ का कठौता भर , दोनों पाँव धोई कर !
पिया जल चुल्लू भर , सबको भी देना है !!
सीता व् लखन पाँव , धोया बड़े प्रेम भाव !
लायूं पास अभी नाव , फिर नाव खेना है !!
गंगा पार नाव गयी , मुंदरी उतार लई !
केवट ने कहा न , मंजूरी मुझे लेना है !!
तुम मुझे त़ार देना , भाव से उबार लेना !
तुम्हे मेरी नाव खेना , शरण में लेना है !!
- -----अनंत चैतन्य - लखनऊ ----- --
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