रविवार, 28 अप्रैल 2013

--------------कृपा----------------
``````````घनाक्षरी छंद````````````
पानी है कृपा तो निज भावनाए शुद्ध रहे ,
सुचिता पवित्रता को नित अपनाना है  !!
मनमानी व नादानी , छोड़ के सरल बने ,
भाव उपकारी हो , शपथ  यह खाना है !!
प्रज्ञा युत चेतना , प्रखरता हो सविता सी ,
साधना में रत रहे , तिमिर मिटाना है  !!
सेवा भाव कर्म बने , सृष्टी के सहायक हो
सतत आराधना का बीड़ा भी उठाना है  !!
       ---अनंत चैतन्य - लखनऊ ---

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