केवट राम संवाद
( छंद )
गंगा जी के घाट खड़ा , जिद पे निषाद अडा !
बोलता है कड़ा कड़ा , पार न उतारूंगा !!
जनता हूँ भली भांति , जादूगरी में है ख्याति !
केवट की मेरी जाति , पाँव ही पखारूँगा !!
कोई तकरार न है , पाँव दो पखारना है... !
यदि शर्त माने प्रभु , बात नही टारूगा !!
बात सुन हसें राम जैसा चाहे करे काम !
मानता हूँ शर्त लाओ , पानी पैर डालूँगा !!
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काठ का कठौता भर , दोनों पाँव धोई कर !
पिया जल चुल्लू भर , सबको भी देना है !!
सीता व् लखन पाँव , धोया बड़े प्रेम भाव !
लायूं पास अभी नाव , फिर नाव खेना है !!
गंगा पार नाव गयी , मुंदरी उतार लई !
केवट ने कहा न , मंजूरी मुझे लेना है !!
तुम मुझे त़ार देना , भाव से उबार लेना !
तुम्हे मेरी नाव खेना , शरण में लेना है !!
- -----अनंत चैतन्य - लखनऊ ----- --
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