सोमवार, 15 अप्रैल 2013

केवट राम संवाद  

( छंद  ) 
गंगा जी के घाट खड़ा , जिद पे निषाद अडा ! 
बोलता है कड़ा कड़ा  ,  पार  न     उतारूंगा !! 
जनता हूँ भली भांति ,  जादूगरी में है ख्याति ! 
केवट की मेरी जाति , पाँव ही      पखारूँगा  !! 
कोई तकरार न है ,   पाँव  दो   पखारना है...  ! 
यदि शर्त माने प्रभु  ,  बात  नही     टारूगा  !! 
बात सुन हसें राम      जैसा चाहे करे काम  ! 
                    मानता हूँ  शर्त लाओ , पानी पैर     डालूँगा  !!                     
                 
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काठ का कठौता भर , दोनों पाँव धोई  कर ! 
पिया जल चुल्लू भर , सबको   भी देना है  !! 
 सीता व् लखन पाँव  , धोया बड़े प्रेम भाव   ! 
लायूं  पास अभी नाव , फिर नाव खेना है   !! 
गंगा पार नाव गयी , मुंदरी   उतार  लई   ! 
केवट ने कहा न ,   मंजूरी    मुझे लेना है   !! 
तुम मुझे त़ार  देना , भाव से  उबार लेना  ! 
तुम्हे मेरी नाव खेना , शरण में   लेना है   !!    
- -----अनंत चैतन्य - लखनऊ ----- --

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