सोमवार, 29 अप्रैल 2013

--------एक पत्र रूठे मित्र के नाम  --------

हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!

रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे  क़दमों  में रहता सारा  जहाँ !!

भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा  तंदुरुस्त रहो  !!

गाल फुलाए क्यों   बैठे हो गले मिलो  !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!

ऐठन रस्सी जैसी , तन    पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!

मित्र महान है , सबसे बड़ी  अमानत  है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है  !!

मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे  !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे  !!

दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों   में ज्यो  रंग  घुले हो घुल   मिल के  !!

मित्र सुदामा ,  जैसे थे  ,    घनश्याम   के !
कर्ण दुर्योधन , मीत  विभीषण  राम के   !!

मित्र शाश्वत  बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से  अब कुछ  तो पिघलो !!

         ---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----

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