--------एक पत्र रूठे मित्र के नाम --------
हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!
रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे क़दमों में रहता सारा जहाँ !!
भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा तंदुरुस्त रहो !!
गाल फुलाए क्यों बैठे हो गले मिलो !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!
ऐठन रस्सी जैसी , तन पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!
मित्र महान है , सबसे बड़ी अमानत है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है !!
मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे !!
दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों में ज्यो रंग घुले हो घुल मिल के !!
मित्र सुदामा , जैसे थे , घनश्याम के !
कर्ण दुर्योधन , मीत विभीषण राम के !!
मित्र शाश्वत बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से अब कुछ तो पिघलो !!
---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----
हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!
रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे क़दमों में रहता सारा जहाँ !!
भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा तंदुरुस्त रहो !!
गाल फुलाए क्यों बैठे हो गले मिलो !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!
ऐठन रस्सी जैसी , तन पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!
मित्र महान है , सबसे बड़ी अमानत है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है !!
मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे !!
दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों में ज्यो रंग घुले हो घुल मिल के !!
मित्र सुदामा , जैसे थे , घनश्याम के !
कर्ण दुर्योधन , मीत विभीषण राम के !!
मित्र शाश्वत बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से अब कुछ तो पिघलो !!
---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----
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