बुधवार, 26 सितंबर 2012


मै ( I ) v/s मै ( ego )

मै ,
रहता हूँ प्रतिपल
अपने मै के  साथ !
दिन व् रात !!

मै और मेरे मै में
द्वन्द छिड़ा रहता है !
मेरा मै , मेरे मै पर
हमेशा ही भारी रहता है !!
मै के आगे मै बढ़ न पाया !
मै ने हर बार ही ,  अडंगा लगाया !!

हर राग द्वेष में
मुख्य अतिथि बन आया !
आग में घी बन कर
उसे और तीव्र जलाया !!

काश मेरा मै न होता
तो , मै कितना सहज और सरल होता !
पत्थर सा कठोर नहीं
गंगा जल सा तरल होता !!

मेरे मै के कारण
मै , अपने मै में ना रहता  !
बहुतों के दिलों में रहता !!
अनंत , अक्षय , ऊर्जा में
चैतन्य पूर्ण बहता !!
--स्वामी अनंत चैतन्य -- लखनऊ ---

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