शनिवार, 14 अगस्त 2010

जैसी दृष्टि वैसी स्रष्टि

श्री सदगुरुवे नमः
( सदगुरु श्री कुणाल कृष्ण )
( सम्बुद्ध रहस्य दर्शी एवम संस्थापक अनन्त पथ )

जैसी दृष्टि वैसी स्रष्टि

हमारी दुनिया हमारे ही सोच से उत्पन्न होती है ! जैसी हमारी दृष्टी होगी उसी तरह की दुनिया हमारे लिए निर्मित हो जायेगी ! व्यक्ति का मन ही उसकी दुनिया का सूत्रधार है , उसकी सृष्टी की संरचना हेतु ! जहा तक हम सोच सकते है वह तक हमारा विस्तार संभव है ! जैसे जल जिस सीमा में बंधा होता है उसकी वही दुनिया बन जाती है - छोटे पात्र का जल , कुए का , पोखर का , नदी का जल और अंततः सुमुद्र स्थित जल ! सबकी अलग सीमा , अलग दुनिया !


इस सम्बन्ध में एक उदाहरण  प्रस्तुत है --

एक महात्मा जी अपनी मौज में प्रकृति सौंदर्य को रसास्वादन करते करते एक नदी के तट पर पहुत गए ! बड़े ही शांत मुद्रा में अपने मौन में वार्तालाप कर रहे थे ..कलरव करती नदी की अविरल धारा के प्रवाह को निहार रहे थे ! ....तभी वहां ३ व्यक्ति आये और आपस में बाते करने लगे की यह स्वामी जी क्या देख रहे होंगे ! एक बोला नदी के उस पार की जमीन हथियाना चाहते है अपने आश्रम के लिए , दूसरे ने कहा सामने नहाती हुई बालाओ को ताक़ रहे है तीसरे ने कहा नहीं यह नदी को देख रहे है की कितनी गहरी होगी ! तीनो एक मत न हो सके आखिर तय हुआ की क्यों न बाबाजी से ही पूछा जाये की क्या देख रहे है और उनसे ही अपने बात की पुष्टि करा ली जाए ! बाबाजी ने सारी बाते सुन कर कहा बेटे सच कहो तो हम इन तीनो बातो में से कुछ नहीं देख या सोच रहे थे ! हम तो इन सभी के रचनाकार परम चेतन , अनन्त सत्ता , सीमा रहित इश्वर के ध्यान में खोये थे ! कहने का मतलब यह की यहाँ चार लोगो की अलग अलग दुनिया थी !

सारांश यह की कल्पना या यथार्थ दोनों की परिस्थितियों का महा नायक मेरा मन ही है !

जब हम focus कर लेते है अपने को किसी सीमा विशेष तक तब वहां तक अपनी दुनिया का श्रजन कर पाते है ! जब हम विराट में सोचने लगते है तो मेरे निर्णय भी विराट रूप धारण कर लेते है ! कभी इस बात का प्रयोग करके देखे -- जब भी हमें जीवन के बड़े फैसले लेने हो तो उससे पूर्व खुले आकाश को पूर्णता से देखे , कुछ समय अपने में विराटता का अनुभव करे ! उस के बाद देखेगे की जो निर्णय पहले ले रहे थे उसकी सोच बदल गयी है , अब व्यापकता को लिए हुई है !

कभी छोटे बच्चे को देखा है वह पूर्ण दृष्टी से देखता है , उसमे निश्चल भाव , भोलापन , प्रसनता पूर्ण रूप से विद्यमान होती है ! उस के ऊर्जा का स्तर बहुत अधिक होता है , और उसके दृष्टि में सब समाहित होता है ! संसार में जितने भी महत्वपूर्ण व्यक्ति हुए है उनकी दृष्टी सीमित नहीं थी , उनके सोचने का नजरिया , जीवन जीने का नजरिया व्यापक था ! इसी लिए वे महान बने !



प्रणाम

अनन्त पथ का पथिक

स्वामी अनन्त चैतन्य

लखनऊ

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