भगवान् श्री राम
भगवान ब्रह्माजी द्वारा वेद स्तुतिया
वेद स्तुति
छंद
जय सगुन निर्गुण रूप रूप अनूप भूप सिरोमने
दस कंधारादी प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बाल हने
अवतार नर संसार भार बिभंज दारुण दुःख दहे
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे
तव बिषम माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे
भाव पंथ भ्रमत अमित दिवस निस काल कर्म गुननि भरे
जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिध दुःख ते निर्बहे
भव खेद छेदन दच्छ हम कहूँ रछ राम नमामहे
जे ज्ञान मान बिमत्त तव भव हरनि भक्ति न आदरी
ते पाई सुर दुर्लभ पदादापी परत हम देखत हरइ
बिस्वास करी सब आस परिहरि दास तव जे होई रहे
जपि नाम तव बिनु श्रम तरही भाव नाथ सो समरामहे
जे चरण सिव अज पूज्य रज सुभ परसि मुनिपतिनी तरी
नख निर्गता मुनि बंदिता त्रिलोक पावनि सुरसरी
ध्वज कुलिस अंकुस कंज जुट बन फिरत कंटक किन लहे
पद कंज द्वन्द मुकुंद राम रमेस नित्य भजामहे
अब्व्यकता मूलमनादी तरु त्वच चारी निगमागम भने
षत कंध साखा पञ्च बीस अनेक पर्ण सुमन घने
फल जुगल बिधि कटु मधुर बेली अकेलि जेहि आश्रित रहे
पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे
जे ब्रह्मा अजमाद्वैतामनुभाव्गाम्य मन पर ध्यावही
ते कहहु जानहु नाथ हम तव सगुन जस नित गावहि
करुनायतन प्रभु सदगुनाकर देव यह बर मागहि
मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरण हम अनुरागही
दोहा
सब के देखत बेदंह बिनती कीन्हि उदार
अंतरधान भए पुनि गए ब्रह्म आगार
(राम चरित मानस - उत्तरकाण्ड – दोहा 13a )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें