गुरुवार, 19 अगस्त 2010

वेद स्तुति



भगवान् श्री राम

भगवान ब्रह्माजी द्वारा वेद स्तुतिया

वेद स्तुति


छंद
जय सगुन निर्गुण रूप रूप अनूप भूप सिरोमने
दस कंधारादी प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बाल हने

अवतार नर संसार भार बिभंज दारुण दुःख दहे
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे

तव बिषम माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे
भाव पंथ भ्रमत अमित दिवस निस काल कर्म गुननि भरे

जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिध दुःख ते निर्बहे
भव खेद छेदन दच्छ हम कहूँ रछ राम नमामहे

जे ज्ञान मान बिमत्त तव भव हरनि भक्ति न आदरी
ते पाई सुर दुर्लभ पदादापी परत हम देखत हरइ

बिस्वास करी सब आस परिहरि दास तव जे होई रहे
जपि नाम तव बिनु श्रम तरही भाव नाथ सो समरामहे

जे चरण सिव अज पूज्य रज सुभ परसि मुनिपतिनी तरी
नख निर्गता मुनि बंदिता त्रिलोक पावनि सुरसरी

ध्वज कुलिस अंकुस कंज जुट बन फिरत कंटक किन लहे
पद कंज द्वन्द मुकुंद राम रमेस नित्य भजामहे

अब्व्यकता मूलमनादी तरु त्वच चारी निगमागम भने
षत कंध साखा पञ्च बीस अनेक पर्ण सुमन घने

फल जुगल बिधि कटु मधुर बेली अकेलि जेहि आश्रित रहे
पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे

जे ब्रह्मा अजमाद्वैतामनुभाव्गाम्य मन पर ध्यावही
ते कहहु जानहु नाथ हम तव सगुन जस नित गावहि

करुनायतन प्रभु सदगुनाकर देव यह बर मागहि
मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरण हम अनुरागही

दोहा

सब के देखत बेदंह बिनती कीन्हि उदार
अंतरधान भए पुनि गए ब्रह्म आगार

(राम चरित मानस - उत्तरकाण्ड – दोहा 13a )



राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम




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