ज्ञात , अज्ञात . अज्ञेय
जीवन में दो तरह की यात्राएँ है , एक सांसारिक एक आध्यात्मिक अथवा दूसरी तरह से कहे की एक वाह्य जगत की यात्रा एक अंतर जगत की यात्रा ! ज्ञात से ज्ञात की ओर बढ़ना सांसारिक उपक्रम है , ज्ञात से अज्ञात की ओर जिसका लक्ष्य अज्ञेय की खोज है वह आध्यात्मिक यात्रा है !
जीवन में जब सब कुछ व्यवस्थित एक ढर्रे पर चल रहा है तो समझो ज्ञात से ज्ञात की ओर ही चल रहे है ! इसमें सब कुछ पता है सुबह होगी सारे काम तयशुदा कार्यक्रम से किये जाने है ...वही रास्ता वही साधन , वही व्यवस्थाये , वही कार्य प्रणाली ..सब ज्ञात ! बस थोड़े से हेरफेर के साथ ! इसमें भौतिक विकास तो हो सकता है लेकिन सजगता का अभाव रहता है ! क्योकि कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं !
तथा कथित आध्यात्म में भी हम ज्ञात से ज्ञात में ही घूमते रहते है , घर में रखी मूर्तियों को स्नान कराना , भोग लगाकर कर स्वयं ग्रहण कर लेना आदि आदि ..सब कुछ तय बिना किसी भक्ति भाव के केवल एक दैनिक कार्यक्रम के तहत भगवान की सेवा मशीन की तरह ...यह सब अच्छा है लेकिन इस से कोई रूपांतरण नहीं घटने वाला , जब तक संवेदनाये , भाव को न जोड़ी जाय !
ज्ञात से अज्ञात का रास्ता थोडा भिन्न है , मानो हम किसी अनजान रास्ते से चल रहे हो ..हमें उस रास्ते के एक एक परिद्रश्य मोहित करेंगे , आकर्षित करेंगे ! एक एक वस्तु भले ही साधारण क्यों न हो बिलकुल नए setting के साथ अच्छी दिखेगी ! अज्ञात के रास्ते पर कुछ भी तय नहीं कब कौन मिल जाए ..सब विचित्र सा ! शायद इसी कारण से इश्वर ने जीवन म्रत्यु को अज्ञात जगत में डाल रखा है ! किसी को अगर अपने मृत्यु की तिथि सही सही मालूम हो जाए तो उसका जीवन ही म्रत्यु जैसा हो जाएगा !
अज्ञात में आनंद है , thrill है , इसी लिए आध्यात्म का नशा बहुत नशीला और मजेदार होता है !
ज्योतिषियों से क्यों जानना चाहते हो ? इसलिए की निश्चिन्त हो जाओगे ..इसमें असली शान्ति नहीं मिल सकेगी !
अज्ञेय को जाना ही नहीं जा सकता ! बूँद सागर में मिलकर सागर को जान न पाएगी क्योकि वह बूँद ही नहीं बची जो सागर को जान सके , सागर में उसका अस्तित्व मिट गया है ! इसी लिए अज्ञेय की खोज अनन्त यात्रा है ...........
प्रणाम
अनन्त पथ का पथिक
स्वामी अनन्त चैतन्य
स्वामी अनन्त चैतन्य
लखनऊ
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