शनिवार, 31 जुलाई 2010

दैनिक दिनचर्या सम्बन्धी उपयोगी नियम --भाग 2 ( भोजन सम्बन्धी नियम )


श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः


प्रिय मित्रो ,

                           आपसभी के समक्ष श्रृखला बद्ध तरीके कुछ आवश्यक किन्तु सरल नियमो को रख रहे है , जो आप के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगे ऐसा मेरा मानना है ! भाग 2  जो भोजन से  सम्बंधित है , प्रस्तुत है !
                         
                         दैनिक दिनचर्या में अगर निम्नाकित आवश्यक नियमों का पालन किया जाए तो ऊर्जा के विकाश में गति तो होगी ही साथ ही साथ बीमारियों से भी दूर रहकर स्वस्थ एवम समृद्ध जीवन जिया जा सकता है !



( अन्नपूर्नेश्वरी माँ से भिक्षा ग्रहण करते भगवान् शिव )


भोजन सम्बन्धी  कुछ नियम


१   पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , पीपल , वट वृक्ष के नीचे , भोजन नहीं करना चाहिए !
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा , श्राध का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
२४. कंजूस का , राजा का , वेश्या के हाथ का , शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए !


प्रणाम ,

अनंत पथ का एक पथिक ,

स्वामी अनंत चैतन्य

दैनिक दिनचर्या सम्बन्धी उपयोगी नियम --भाग १ ( शयन सम्बन्धी नियम )

श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नमः

प्रिय मित्रो ,
                        आपसभी के समक्ष श्रृखला बद्ध तरीके कुछ आवश्यक किन्तु सरल नियमो को रख रहे है , जो आप के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगे ऐसा मेरा मानना है ! भाग एक जो शयन से सम्बंधित है , प्रस्तुत है !
                       दैनिक दिनचर्या में अगर निम्नाकित आवश्यक  नियमों का पालन किया जाए तो ऊर्जा के विकाश में गति तो होगी ही साथ ही साथ बीमारियों से भी दूर रहकर स्वस्थ एवम समृद्ध जीवन जिया जा सकता है !



शयन हेतु कुछ आवश्यक नियम

दिशा सम्बन्धी नियम

१.    हमेशा दक्षिण की ओर सिर रख कर सोना चाहिए !
२.   पश्चिम दिशा शयन हेतु द्वितीय उत्तम अवस्था है !
३    उत्तर की ओर सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए !
४    इशान / पूर्व  की ओर भी सिर करके नहीं सोना चाहिए !

( उपरोक्त दिशाए इस लिए बताई जा रही है क्योकि मैग्नटिक फ़ील्ड के दुष्प्रभाव से बचा जा सके  और प्राण ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा प्राप्त किया जा सके  ! )

अन्य नियम ,

५   बहुत ऊंची खाट , मैली खाट , टूटी खाट पर नहीं सोना चाहिए !
6   सिर नीचा करके नहीं सोये !
7   बहुत ऊंची तकिया लगाकर नहीं सोये !
८.  जूंठे मुह , भीगे पैर रख कर , मुख में ताम्बूल , पान मसाला आदि रख कर नहीं सोना चाहिए !
९   कभी भी नग्न-अवस्था में नहीं सोना चाहिए , आयु कम होती है !
१० सिर पर पगड़ी अथवा , जाड़ो में गरम टोपी लगाकर नहीं सोना चाहिए !
११.  घुटने से नीची चारपाई या बेड पर सोने से घुटने की बीमारिया होती है !
१२.  सोने से पूर्व ध्यान , बड़ो को प्रणाम करके सोना चाहिए !
१३.  बेड के नीचे कुछ भी नहीं रखना चाहिए , आज कल बॉक्स बेड का प्रचलन अनिद्रा अथवा अतिनिद्रा की बीमारिया लाता है !
१४  बेड का सिरहाना दीवार के पास हो , बीचोबीच कमरे में नहीं सोना चाहिए , लोग पंखे के बिलकुल नीचे सोते है , यह ठीक नहीं है  !
१५. काले या बहुत डार्क रंग की बेडशीट या तकिया लगाने से डरावने स्वप्न बहुत आते है अतः light कलर की बेडशीट बिछाए !
१६. छोटे बच्चो को इतिहास , पुराण की प्रेरक कहानिया सुना कर सुलाए जो चरित्र निर्माण में सहायक होती है !

                 अंत में यदि सयुक्त परिवार में है , यदि संभव हो सके तो अपने से बड़ो की यथा संभव सेवा करके ही सोये   ! बड़ो , बुजुर्गो का आशीवाद , सदगुरु का ध्यान करके ही सोये , यह बहुत आवश्यक है !
          भगवान् श्री राम भी सोने से पूर्व गुरु के चरणों की सेवा अवश्य ही करते थे ! कृपया राम चरित मानस का सन्दर्भ ले ,



निशि प्रवेश मुनि आयसु दीन्हा , सबही संध्या बंदनु कीन्हा !!
कहत कथा इतिहास पुरानी , रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी !!

मुनिवर सयन  कीन्हि तब जाई , लगे चरण चापन दोउ भाई !!
जिन्हके चरण सरोरुह लागी , करत विविध जप जोग बिरागी !!

तेई दोउ बन्धु प्रेम जणू जीते , गुरु पद कमल पलोटत प्रीते !!
बार बार मुनि आज्ञा दीन्ही , रघुबर जाई सयन तब कीन्ही !!


 
प्रणाम ,

अनंत पथ का पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

बोलने की कला

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः
सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )


बोलने की कला


तुम्हारा बोलना आपसी समझौता है अपनी -अपनी

विछिप्तता को बाहर फेकने का !

बोलना सिर्फ खूँटी खोजना है अपनी बेचैनी को

टांगने के लिए ! तुम अपने बोलने में दूसरे का

उपयोग कूड़ेदान की तरह करते हो !

जब बोलने के लिए कोई नहीं मिलता तो तुम

अपने से ही बोलने लगते हो !

दूसरे से बोलने में सार्थकता है , अपने से ही

बोलना पूरी तरह विछिप्तता है !

लेकिन सजग होकर देखो की जब तुम दूसरे से

बोल रहे होते हो तो सचमुच दूसरे से बोल रहे होते हो !

तुम बात करते हो कुछ छिपाने के लिए , न की कुछ कहने के लिए !

तुम इसी लिए निरंतर बोलते रहते हो की कही

तुम्हारा तुमसे आमना सामना न हो जाए !

तुम वाणी से ही नहीं पूरे शरीर से बोलते हो !

तुम्हारा बोलना आइसबर्ग की तरह है ! जितना

तुम बोलते हो उससे कई गुना इसके पीछे

छिपा रहता है - जिसे तुम बिना बोले कहते हो !

बोलने की कला सीखो ! इसके लिए इन सारी

बातो पर सजग रहो !

यह सजगता व्यर्थ के बोलने को समाप्त कर देगी

और तुम्हारे बोलने में अर्थ प्रकट होने लगेगा !



( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )


संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

देखने की कला

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः

सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )


देखने की कला

सम्यक दर्शन ही सत्य है !

देखना ही करना है !

तादात्म्य के बिना देखे !

ज्ञान , अज्ञान , स्मृति , शब्द व् मूर्छा के बिना देखे !

तुम्हारी धारणाये देखने में बाधा है ,

उन्हें गिरा दो !

देखना प्रेम की घटना है !

प्रेम से भर कर जब तुम देखते हो

तुम ऊर्जावान हो जाते हो !

प्रेम रहित देखने से आँखों

के माध्यम से सर्वाधिक ऊर्जा नष्ट होती है !

तुम्हारे विचार व आँखों की गति आपस में जुडी है !

आँखे एक प्रवाह है !

आँखों के प्रवाह में एक लयबद्धता , पद्धति

व प्रक्रिया है , उसके प्रति सजग हो !

आँखे पार्थिव व् अपार्थिव के बीच का एक सेतु है !

जो पाना है तुम वही देखते हो !

तुम्हारी दृष्टि ही तुम्हारी श्रृष्टि है

तुम्हारा जीवन व तुम्हारा जगत एक दर्पण

की भाति है , उसमे स्वयं को देखो !

दृश्य की खोज अधार्मिक और दृष्टा की खोज

धार्मिक है !

न दृश्य बने , न दर्शक बने , दृष्टा बने !

समग्रतः देखे , अंशतः नहीं !

जो भी तुम देख पाते हो , वह तुम नहीं हो !

देखते देखते ही तुम पाते हो !

और द्रष्टा व द्रश्य है

और सृष्टा व द्रष्टा के साथ ही

सारी दृष्टी का खो जाना ही मोक्ष है !



( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )


संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

बुधवार, 28 जुलाई 2010

सुनना मौन में ही संभव है !

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः
सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )



सुनने की कला




सुनना मौन में ही संभव है !

पूरी तरह विश्रांत होकर सुने !

पूरी तरह सजग होकर सुने !

अपने आतंरिक वार्तालाप को तोड़ दे ,

और तुलना रहित होकर सुने !

सहमति और असहमति को गिराकर ,

निरुद्देस्य होकर सुने !

ऐसे सुने जैसे पहली बार सुन रहे हो !

सुनते हुए केवल सुने , अपने भीतर

कोई व्याख्या या विश्लेषण न उठने दे !

कान पर पड़ती चोट तुम्हारी आँख खोल देगी !

शब्दों को सुने और शब्दों के पार देखे !

श्रोता से दृष्टा तक की यात्रा !

सुनने की कला आते ही उत्पन्न होती है

देखने की कुशलता !

सुनना तभी पूरा होता है जब तुम उसे भी

अनुभव करते हो जो सुन रहा है !

सम्यक श्रवण साक्षी भव में ले जाता है !

( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )

 
संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

सोमवार, 26 जुलाई 2010

मेरी डायरी के कुछ पन्ने

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः


सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )

                         आज की अमृत बेला कुछ अलग ही थी , कई अर्थो में अलग ! लगता था कल से शुरु होनेवाले आध्यात्मिक माह ( श्रावण माह ) के स्वागतार्थ कुछ ज्यादा ही उल्लास लिए है , केन्तु उस से भी कही ज्यादा आह्लादित इस लिए थी की आज एक महान पर्व गुरु पूर्णिमा जो था !

                     गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरु सत्ता की चेतना का पूर्ण प्रभुता के साथ अवतरण का दिन !

                   वैसे तो इस धरा पर जन्म लेते ही प्रथम गुरु माँ होती है , फिर अच्छर ज्ञान हेतु अध्यापक के रूप में गुरु प्राप्त होते है , किन्तु आध्यत्मिक गुरु जिसे सदगुरु कहते है , का महत्व कई मायने में बहुत अधिक है, क्योकि वह परम लक्ष्य के ओर शिष्य को समय समय पर प्रत्यक्ष - परोक्ष रूप से दिशा निर्देश प्रदान कर्ता है !

                 " अनंत " ( गुरु गृह ) में आज सायं ५ बजे से गुरु दर्शन का एक अद्भुत कार्यक्रम होना था , मुझे भी उस बुद्ध क्षेत्र की अमृत वर्षा में सरोबोर होना था सो समय से पहुच गया , क्यों की मेरे अन्दर उस की एक एक बूँद पाने का लालच था ! अंदर प्रवेश होते ही आज कुछ अजीब से अनुभूति हो रही थी , चेतना का प्रवाह उच्चतर स्तर पर था !

                  सायं ५.३० पर सदगुरु ने दर्शन दिए ! आज सदगुरु का मुख मंडल देखते ही बनता था , उनके मुखमंडल की आभा सभी ओर सामान रूप से अपनी रश्मिया बिखेर रही थी , मानो प्रकाश का एक झरना फूट पड़ा हो , उनकी उपस्थिति मात्र ही सम्पूर्ण वातावरण को मनोहारी एवं सुरभित कर रही थी !

              सदगुरु देव द्वारा सभी को प्रेम और शुभासीस मिली , सभी शिष्य कृतकृत हो उठे थे , बड़ा ही भाव पूर्ण , अवर्णनीय वातावरण था , बस उन छनो का अनुभव मात्र ही रोमांचित कर देना वाला है ! कुछ समय पश्चात सद्गुरु देव द्वारा ब्रह्मांड के समस्त सद्गुरुवो की चेतन का विशेष आवाहन किया , इस प्रक्रिया के पश्चात तो प्रतीत हो रहा था की यह स्थान उन परम चेतनाओ के लिए बहुत कम पड़ गया है ! सभी साधक इतने मस्त दिख रहे थे जैसे मदहोश हो गए हो ! मस्ती के उस आलम का वर्णन शब्दों में संभव नहीं .!

                फिर कुछ समय पश्चात जब सब वापस अपने शरीर में लौटे ,तो सदगुरु देव ने कहा जिस को जो भाव आ रहे हो , ह्रदय के उदगार हो , प्रस्तुत करना चाहे तो कर सकते है ! किसी ने गीत , किसी ने संगीत तो किसी ने आध्यात्मिक अनुभव बांटे ! वस्तुतः मेरे पास तो सारे शब्द लुप्त हो चुके थे , निः शब्द की स्थिति ! हां मेरी आँखों जरूर बीच बीच में अश्रुपात कर श्रद्धा सुमन अर्पित कर लेती थी !

              आज सचमुच ऐसा लग रहा था कि मेरे सदगुरु शरीरी नहीं अशरीरी है , उनकी चेतना सभी के दिलो में बसी हुयी है !

            और क्या कहूं ....


अनत पथ का पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य

लखनऊ

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

सदगुरु तेरी कृपा अनंत --भाग 1

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः

सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )


प्रिय मित्रो ,
                 गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसार पर आप सभी को बहुत बहुत हार्दिक अभिवादन ! अपनों से अपनी बात  में मै अपने परम श्रद्धेय सदगुरु श्री कुणाल कृष्ण से हुई कुछ अन्तरंग बाते बताना चाहता हूँ ! सर्व प्रथम सदगुरु देव के बारे में मै आप से संछेप में  कुछ बताना चाहता हूँ !.

एक संछिप्त परिचय
                 सम्बुद्ध रहस्य दर्शी , सदगुरु देव सतत प्रवाहमान धारा में एक खूबसूरत मोड़ है ! यह मनुष्यता में छाये घने अन्धकार को चीर कर उभरे हुए स्वानुभूत आद्द्यात्मिकता  के स्वाभाविक आलोक है ! सदगुरु देव के अनुसार अध्यात्म  एक अनंत यात्रा है इस कारण से  इन्होने अनंत पथ नामक  एक संस्था को संगठित किया ! गुरुदेव  का व्यक्तित्व किसी धर्म विशेष की सीमा में कैद नहीं है वह तो बस मानो धार्मिकता के अभी अभी खिले हुए एक ताजे कमल के फूल है !
                 इनके एक एक शब्द  हमें नि शब्दता की और ले जाते है और गुरुदेव  की उपस्थिति मात्र ही शून्य के आयाम का अद्भुत अनुभव करा देती  है जिसकी अनुभूति मात्र ही रोमांच उत्पन्न कर देती है !
                सद गुरु के पावन  सानिध्य में प्रति बुधवार को inner hormony  meditation  और पूर्णिमा , अमावस्या को self  remembering meditation ( S R M ) तथा समय समय पर अंतर्यात्रा  ध्यान शिविरों  का आयोजन होता  रहता  है . सदगुरु देव ocult sceinces , healing  आदि विषयों पर गुह्य ज्ञान करा कर  अनंत पथ के पथिको को अनुग्रहित करते रहते है .
( क्रमशः......)

सदगुरु के साथ अन्तरंग वार्ता

                  आज गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रातः  ११ बजे का  समय प्राप्त  हुआ , गुरुदेव द्वारा कुछ कार्य बताया गया था , उसे सौपने के बाद गुरु महिमा पर वार्ता करने का दुर्लभ सयोग प्राप्त हुआ  ,

प्रश्न  ------ ------गुरु गीता के सूत्रों पर बोलते हुए पिछली sittings में जो आप ने कहा था की सदगुरु के बिना सारे शास्त्र  और विधिया व्यर्थ है , इस का तात्पर्य समझ में नहीं आया ,क्योकि शास्त्र भी तो गुरुवो के ही बचन है , तो वह व्यर्थ कैसे हो सकते है ?

सदगुरु देव ----- देखो इस का गूढ़ अर्थ समझो . एक सदगुरु शब्द से पार की यात्रा है . शब्द  से निःशब्द की यात्रा है . वस्तुतः सदगुरु शब्दों  के माध्यम से कुछ दे नहीं रहा होता है शब्दों शास्त्रों से निकले है , और शास्त्र  तुम्हे कहाँ  तक ले जाते है ? तर्कों , विधियों , कर्म कांडों की व्यवस्थाओ के एक बड़े जंगले तक न ! हाँ  तुम्हारा यह कहना ठीक है कि जो भी शास्त्र है उनको सदगुरुवो ने ही दिया है  लेकिन अगर तुम सब्दो तक ही अटके रहे उसी के आशक्ति में रहे तो तुम उस परम सत्य को नहीं जान पावोगे जो की सब्दों से कही अधिक  दूर है !

प्रश्न  - ..           लेकिन गुरुदेव.... गुरु भी तो सब्दों को  ही माध्यम बनता है ?

सदगुरु देव  .. ..नहीं ऐसा नहीं है  .. एक सदगुरु जब सब्दों के माध्यम से बोलता है तो वह सब्दों से बहुत अधिक होता है . वह उस सब्द की व्यवस्था  के साथ साथ निः शब्द  की गंध भी शिष्य के लिए लेकर आता है !  वह गंध  शिष्य के अंतरतम में प्रवेश करती है ! शास्त्रों से गुजरते हुए तुम और अधिक  ग्यानी हो सकते हो , लेकिन जब तक एक सदगुरु के माध्यम से तुम्हारे अंदर बोध न घटेगा शास्त्र  समझोगे कैसे ? तुम शास्त्रों के  मर्म को समझ न सकोगे . यही तो गुरु गीता के सूत्रों में शिव ने बोला है ,
                  इस बारे में मै तुमको एक बुद्ध से बहुत प्रसिद्द घटना बताता हो , सुनो......
                  कहते है कि  एक दिन सुबह गौतम बुद्ध  हाथ में कमल का फूल लिए हुए अपने शिष्यों के बीच आ गए . वह हमेशा आते है तो कुछ बोलते है ,ध्यान के बाद देशना देते है उनकी देशना  को दूर दूर से आये शिष्य बहुत ध्यान पूर्वक सुनाने के लिए एकत्र होते थे . किन्तु आज वह मौन है ,
                 सदगुरुवो के बारे में निश्चित होना एक बहुत बड़ा भ्रम  है ..पता नहीं कब क्या करेंगे क्या कहेगे यह सब रहस्यमयी  होता है बाहर परिधि पर बैठ कर शिष्य कुछ भी तय नहीं कर सकते . आज शिष्यों को लगा शायद  गौतम बुद्ध  का स्वस्थ्य ठीक नहीं है ! बुद्ध को  न सुन पाने के कारण शिष्यों में बेचैनी बढ़ने लगी एक एक पल जैसे जैसे बीत रहा था शिष्य बहुत ही बेचैन हो रहे थे ..लेकिन शिष्यों  के बीच बैठा  एक शिष्य महाकस्यप अचानक जोर जोर से हसने लगा , हमेशा शांत रहने वाला महाकश्यप आज ठहाके मार मार के हसे जा रहा था  ! शिष्यों को लगा कि लगता है आज बुद्ध के साथ साथ इसको भी कुछ हो गया है !
                ...किन्तु कुछ छण के  बाद बुद्ध ने महाकश्यप को अपने पास बुला कर बैठाया और उसे वह कमल का फूल हाथो में पकड़ा दिया  ...आज गौतम बुद्ध ने  तो  निः शब्द कि दशा में  सभी कुछ महाकश्यप को दे दिया  .
                   सभी जानते है इन्ही महाकश्यप से ही बाद में zen  परंपरा का प्रारंभ हुआ  ! तो ..सब कुछ शास्त्रों  से नहीं मिलता !
                                                                                                                                     ( क्रमशः .......)

                           आज की बात इसी कामना से समाप्त करते है , की मुझे कमल तो अभी नहीं प्राप्त को पाया है हाँ  सदगुरु के चरण कमलों में  स्थान तो प्राप्त ही है ..बहुत बहुत  आभार है गुरु देव का जो मेरी जिज्ञाशाओ  का समाधान करते रहते है !

प्रणाम ,

अनंत पथ का एक पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ








सोमवार, 19 जुलाई 2010

अहं पर चोट - आत्मोत्थान हेतु आवश्यक

श्री गणेशाय नमः
अहं पर चोट

                            अहं के सम्बन्ध में अगर कहा जाए तो वस्तुतः उसके २ पक्ष है या यह कहे कि अहं की एक सीढ़ी किसी को उत्थान  कि ओर प्रेरित करती है तो दूसरी ओर यह किसी को गर्त में भी ले जाकर पटक सकती है ! जब  अहं आत्मबल के रूप को प्रकट करती है तो  वह विवेक पैदा करती है , उन्नति कारक है ! किन्तु जब यह भौतिक अथवा ज्ञान बल को प्रदर्शित करती है तो यही  पतन का कारक भी बन जाती है ! धन का ,शरीर का , सौंदर्य का ,  संपत्ति का , सत्ता का अहं वैक्तित्व  के विकास हेतु  पर्वत कि तरह से रोड़ा बन जाती है  !
                          वस्तुतः अहं पर लगी चोट अहं को तोड़ती है एवं प्रगति का मार्ग प्रशस्ति  करती है . जब तक वस्तुतः अहं चोटिल न हो वह  विकसित  नहीं होता एवं तब तक आध्यत्मिक उन्नति संभव नहीं हो पाती !  
                          गोस्वामी तुलसी दास जी ने कहा है कि " प्रभुता पाई क़ाहि मद नही " ! मद अर्थात नशा ! नशा व्यक्ति को बेहोश बना देता है , विवेक  हर लेता है ! फिर वह  जाहे किसी को क्यों भी क्यों न हो ! हमारे धर्म ग्रंथो में बहुत बार चर्चा आती ही बड़े बड़े पुरुषार्थियो  के अहं को तोड़ने के लिए इश्वर द्वारा तरह तरह के रंगमंच तैयार किये गए ! इनमे से  कुछ उदाहरण है ...नारद जी , परसुराम जी , सुदर्शन चक्र , गरुण जी , इन्द्र देव,  ब्रह्मा जी , अर्जुन आदि आदि .
                          अब बात करते है अहं कि चोट ने किन किन को महान बनाया इस में बालक ध्रुव प्रमुख है , अगर सौतेली माँ ने उनके अहं पर  चोट न किया होता तो क्या आज ध्रुव अंतरिक्ष  में अटल कि उपाधि से दैदेप्तिमान होते !  तुलसीदास जी के अहं को उनकी पत्नी ने चोटिल किया होता तो , आज उनका कोई नाम लेने वाला न होता !  अहं पर चोट हुयी अन्दर कि प्रतिभा प्रज्वलित  हो उठी !
                          हिन्दू दर्शन में गुरु शिष्य परंपरा इस विषय का महत्वपूर्ण सूत्र है ! जब शिष्य अपने शीश को सदगुरु के चरणों में असीम  श्रद्धाभाव से रखता है तभी से उसके अहं का बीज गलना शुरू हो जाता  है और विवेक रुपी विराट बृक्ष बनने के प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है !
                         वस्तुतः हिन्दू दर्शन के सूत्र बिना किसी प्रयोग के बस यूं ही  नहीं बनाये गए है ! उन  पर बहुत व्यापक प्रयोग किये गए है !ऋषियों की वनस्थालिया प्रयोगशालाये ही थी , जिनमे निरंतर प्रयोग चलते रहते थे !  जैसे अपनों से सम्माननियो के चरण स्पर्श करने  का सूत्र अहं को गलने के लिए किया गया था !  जब व्यक्ति अपने से बड़े के  चरण छूता था और उसे अपने सिर से लगता था उस का तात्पर्य यही  था की जहा मेरी सीमा समाप्त होती है वहा  से समाननीय की सीमा  का प्रारंभ होता है ! अर्थात सिर व्यक्ति का सर्वोच्च  स्थान है और पैर प्रारभिक . इस सूत्र को बाद में फिर हमने मान्यताओ के  रूप में स्वीकार किया ,  जो वर्तमान में भाव प्रधान न होकर बस रिश्तों की खानापूर्ती बन कर रह गयी !मंदिरों के  दर्शन  , गुरुवो के दर्शन , संत महात्माओ   के दर्शन  का मुख्य सूत्र ही अहं को मिटाना होता था जिससे कि आगे की ( आध्ध्यात्मिक  )  यात्रा सुगम हो जाए !
                        अहकार पर सही मायनों में चोट लगना और उस का अनुभव कर  लेना व्यक्ति को विनम्र बनती है ! मेरे गाँव की एक घटना है जिसे  आप  से चर्चा  करना चाहता हूँ ! गाव में एक बहुत साधन सम्पन्न व्यक्ति था जो किसी के भी सुख दुःख में   कभी शामिल नहीं होता था ! दुर्भाग्य से एक दिन उसका छोटा बेटा बीमारी से मर गया ,  किन्तु उसके अंतिम क्रिया हेतु गाँव का कोई भी व्यक्ति नहीं गया ( हालाकि इस कृत्य को व्यक्तिगत रूप से मै उचित नहीं मानता ) केवल उस के  घर से ही  २ सदस्य क्रिया कर्म में रहे  ! किन्तु उस घटना ने घमंडी व्यक्ति की आँखे खोल दी ! उस दिन के बाद से  आज गाँव में कोई भी छोटा , बड़ा कार्य हो  वह व्यक्ति परिवार  सहित पूरें तन मन, धन  से सम्मिलित होता है ! धटना सुनाने से यहाँ तात्पर्य यह ही है कि जब तक जोर की चोट नहीं पड़ती है तब तक  परिवर्तन नहीं घटते ! 
                         अंत में यही कहना है कि अहं का टूटना बहुत ही आवश्यक है नही तो फिर परिणाम अच्छे नहीं देखे जाते !

प्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ




बुधवार, 14 जुलाई 2010

संकल्प में विकल्प नहीं

श्री गणेशाय नमः

संकल्प में विकल्प नहीं


                           वैदिक परंपरा में किसी भी कर्म काण्ड , पूजन के पूर्व एक विधान किया जाता है जिस  क्रिया को संकल्प करना कहते है ! भगवान् विष्णु को साक्षी एवं उनकी आज्ञा मान कर अमुक नाम ,अमुक गोत्र,  अमुक स्थान अमुक तिथि , वार, समय ,नछत्र  आदि का नाम लेकर एक विशेष कार्य को पूर्ण करने हेतु  कार्य को उधृत करते हुए प्रतिज्ञा ली जाती है !  यह प्रक्रिया पुरोहितो द्वारा अथवा स्वं ही की  जाती  है ! इसके पीछे उद्देश्य यह की कैसी भी परिस्थितिया हो इस कार्य को करना है एवं इस का कोई विकल्प नहीं सोचना है !
                           संकल्प अर्थात देवताओं , पृकृति , ग्रह , नछत्र , समय को साक्षी मान कर की गयी प्रतिज्ञा जिसका उद्देश्य उस कार्य की पूर्णता तक प्रेरणा देना  है .संकल्प छोटे हो या बड़े व्यक्ति को महानता तक ले जा सकते है ! 
                          संकल्प शक्ति के बल पर ही सैकड़ो , हजारो वर्ष के बाद भी आज राजा हरिश्चंद्र , भगवान् राम , दानवीर कर्ण , भीष्म पितामह , राजा भोज आदि आदि महापुरुष हमारे परम आदर्श और प्रेरणा श्रोत है ! वर्तमान समय में महात्मा गाँधी के संकल्प शक्ति से कौन परिचित नहीं ! भक्त शिरोमणि हनुमान जी का मुख्य सूत्र ही सेवा और संकल्प था सारे समय " राम काजू कीन्हे बिनु मोहि कहा विश्राम " के संकल्प के साथ भगवान् श्री राम का कार्य अनवरत करते रहे और उनसे ज्यादा ऊर्जावान कौन है ..यह संकल्पशक्ति का ही बल था !
                       जहा संकल्प के साथ विकल्प आया वाही संकल्प कमजोर हुवा एवं कार्य की पूर्णता पर प्रश्न चिन्ह लग गया  !  पर्वतारोहण में मंजिल तक पहुचने के प्रायः २ मार्ग होते है ,एक वह जिसमे केवल ऊपर ही जा सकते है जो सीधा लेकिन बहुत कठिन दूसरा लम्बा रास्ता अपेक्षाकृत सुगम , किन्तु पर्वतारोही पहला रास्ता ही चुनना पसंद करते है जिससे ऊपर चढाने में विकल्प का द्वार कम से कम रहे  ! यह मनोदशा उसे मंजिल पर पंहुचा देती है ! इसी तरह लडाई के मैदान में सबसे आगे वाले सैनिको को पीछे वापस आने का विकल्प नहीं छोड़ा जाता !.केवल do or die  का सिद्धांत !  सारे रोमांचक खेलो में इसी तरह का संकल्प होता  है !
                     आज जीवन में कोशिश करते है , देखते है , आदि टालने वाले शब्दों  का प्रयोग आम हो गया  है जिनसे बचना चाहिए ,  इसके स्थान पर करूंगा आदि शब्दों का प्रयोग संकल्प शक्ति को मजबूती प्रदान करते है ! प्रारंभ छोटे छोटे संकल्पों से करना चाहिए फिर वही संकल्प जीवन को उचित दिशा दिखा देते है !
                     ज्यादा कुछ न कहते हुए बस इतना ही कि संकल्पों में विकल्पों कि खोज न करे ....


प्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ





मंगलवार, 13 जुलाई 2010

अन्तः करण में देवत्व का उदय

श्री गणेशाय नमः

अन्तः करण में देवत्व का उदय
                ' देवता ' अर्थात हमेशा देने में संलग्न !..  जिसकी मूल पृकृति  और प्रवृति हमेशा देने की ही हो उस को ही देवता कहते है .

                हिन्दू गन्थो में ३३ कोटि देवता बताये गए है , संभवतः जब यह गिनती  कि गयी होगी उस समय  के समस्त मानवो को भी इस में जोड़ा  गया होगा क्यों कि उस समय के मानवो में देवत्व के गुण मूल रूप से रहे होंगे साथ ही  साथ उनकी शक्तियों को देवि के रूप में जोड़ा गया होगा क्योकि बिना किसी शक्ति के कोई देव पूर्ण नहीं होता . देव समूह  विशेष ऊर्जा अपने स्रोतों ,  से अपने पराक्रम से प्राप्त करके सर्व साधारण के लिए बिना भेदभाव के प्रदान करते थे .यहाँ स्रोत से तात्पर्य परमेश्वर है क्यों कि वही तो सब का मूल श्रोत है  . सवित ( सूर्य ) देवता परमेश्वर से ऊर्जा ग्रहण करके ब्रह्माण्ड  में सदैव प्रवाहित करते रहते है इसी प्रकार वायु देवता , वरुण देवता आदि आदि . उस मूल श्रोत से तत्त्व प्रधान ऊर्जा प्राप्त कर सर्व साधारण को हमेशा बिना किसी भेदभाव के प्रवाहित  करते रहना  ही देवतावो का मुख्य कार्य अवं प्राकृतिक  धर्म है .
                     ...सोचो अगर देवता अपना प्राकृतिक गुण धर्मं छोड़ दे दो  ?  पृकृति  में असंतुलन  पैदा हो जाएगा , सभी का अस्तित्व ख़त्म  हो जाएगा साथ ही उस देवता का भी .  
                       कहने का तत्पर पाठक गण समझ गए होंगे . सोचो ! यदि इस ब्रह्माण्ड से प्राप्त प्राण वायु को हम अपनी नाशिका  से केवल प्राप्त ही करते रहे वापस न लौटाए तो कितने पल जी सकते है . यदि भोजन को मुह कहे कि हम अपने पास ही रखेगे तो कितना और कितनी देर रख सकता है उसको आगे भेजना  ही पड़ेगा यही मूल नियम है .. आज समाज में जो असंतुलन  और  समस्याए  ही समस्याए  है उस का मुख्य कारण ही व्यक्ति में देवत्व प्रकृति  का आभाव है और केवल जरूरत से ज्यादा संचय की प्रवृति . पृकृति  पेड़ पौधे नदिया सब हमारे लिए उदाहरन  है
बृक्ष कबहु नहि फल भखै नदी न संचय नीर . परमारथ के कारजे  साधुन धरा सरीर
                    इश्वर प्रदत्त , समाज प्रदत्त , पुरुषार्थ प्रदत्त जो भी सुख साधन है उस को मूलतः अपने पास न रख कर कुछ न कुछ जरूर समाज को रास्ट्र को लौटना चाहिए . दान देने का जो सूत्र  शाश्त्रो  में दिया गया है वह  इसी पर आधारित है ..जरूरत से ज्यादा संचय तालाब पोखर के पानी के तरह हमारे अन्तः करण में सडन ,  गन्दगी उत्पन्न कर देता है
                     अंत में इतना ही कि हमें इश्वर प्रदत्त सभी सुख साधनों धन आदि का अपव्यय न करके  यथा संभव देवत्व भाव से समाज को विभिन्न रूपों में लौटते रहना चाहिए  इससे समय चक्र को , अस्तित्व को सहयोग होगा


प्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

कन्याओ के वैवाहिक विलम्ब हेतु रामचरित मानस से एक अचूक , अनुभूत मंत्र प्रयोग

श्री गणेशाय नमः
कन्याओ के वैवाहिक विलम्ब हेतु रामचरित मानस से एक अचूक , अनुभूत मंत्र प्रयोग

                           आज के युग में कन्याओ की शादी में देर होना एक आम बात हो गयी है . जिसका कुछ कारण सामाजिक परिस्थितिया , कुछ समय रहते शादी  न करना   , लोग पंडितो के पास जाते है लेकिन तब तक योग तो करीब करीब निकल चुके होते है बस प्रयोग  ही शेष रहते है . विषय की चर्चा में न जाकर एक बहुत अनुभूत प्रयोग बता रहे है , माँ भगवती की असीम अनुकम्पा से अब तक असंख्य कन्याये शादी करने के पश्चात सुखमय विवाहित जीवन का का आनंद ले रही है  .
           शुभ मुहूर्त में प्रातः काल उठकर माँ गौरी का ध्यान  कर , किसी चौकी पर पीले आसन पर माँ गौरी की फोटो स्थापित कर  ले , स्वयं पीले वस्त्र पहन कर पीले फूलो और  हल्दी  अछ्छ्त  से माँ का पूजन करे ध्यान करे ,एक देसी घी का दीपक जला ले , धूप बत्ती  जला ले ,  मन बहुत शुद्ध और शांत रखे . आसन पीला हो अपने लिए उस पर बैठ कर ही पूजा करे . यह प्रयोग ४१ दिन का है ( जिन दिनों में बेटियों को पूजा वर्जित हो उन दिनों में माताए यह कार्य करले अथवा दिन आगे गिनले )   यह पाठ  ११ या २१ बार पाठ करना है . पाठ के उपरान्त  थोड़ी देर ध्यान   करे और मनपसंद वर द्वारा चयन किया जाना विचारो में लाये . प्रयोग के अंतिम दिन समापन यथा विधि   हवन  
से करे . कन्या भोज कराये .    मंत्र की चौपाईया निम्नानुसार है ;

जय जय जय गिरिराज किशोरी       जय महेश मुख चंद किशोरी
जय गजबदन षडानन माता     जगत जननि दामिनि द्विति गाता
नहीं तव आदि मध्य अवसाना       अमित प्रभाव वेदु नहीं जाना
भव भव विभव पराभव कारिणि  विश्व विमोहिनि स्वबस बिहारिनि
पति देवता सुतीय महु         मातु प्रथम तव रेख
महिमा अमित न सकहि   कही सहस सारदा सेष 
सेवत तोहि सुलभ फल चारी              बरदयिनी त्रिपुरारी पियारी
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे         सुरनर मुनि सब होहि सुखारे
मोर मनोरथ जानहु नीके              बसहु सदा उरपुर सब ही के
कीन्हेउ प्रकट न कारन तेहि             अस कहि चरण गहे बैदेही
विनय प्रेम बस भई भवानी            खसी माल मूरति मुसुकानी
सादर सिय प्रसाद सिर धरेऊ         बोली गौरी हरसि हिय भरेउ
सुनु सिय सत्य असीस हमारी         पूजहि मन कामना तुम्हारी
नारद बचन सदा सुचि साचा     सो बरु मिलिहि जाहि मन राचा
मनु जाहि रांचेयु मिलहि         सो बरु सहज सुंदर सावरो
करुना निधान सुजान                     सील सनेहु जानत रावरो
एहि भांति गौरि असीस सुनि       सिय सहित हिय हरसी अली 
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि            पुनि मुदित मन मंदिर चली 

जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि
मंजुल मंगल मूल           बाम अंग फरकन लगे

( राम चरित मानस - बाल काण्ड २३४-२३६ )
गोस्वामी तुलसी दासजी द्वारा विरचित



प्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ





सोमवार, 12 जुलाई 2010

वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अमृत वचन --1

श्री गणेशाय नमः
श्री सदगुरुवे नमः


वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अमृत वचन


1
अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति हो

2

अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो , यदि इसमें सफल हो गए तो हर काम में सफलता मिलेगी

3

सद्ज्ञान और सत्कर्म यह इश्वर प्रदत्त पंख है , जिनके सहारे स्वर्ग तक उड़ सकते है

4
गृहस्थ एक तपोवन है , जिसमे संयम , सेवा और सहिष्णुता कि साधना करनी पड़ती है

5
प्रसन्न रहने के दो ही उपाय है , आवश्कताए कम करे या परिश्थितियों से तालमेल बिठाये


मम ह्रदय कंज निवास करू रघु नन्द आनन्द कंद

श्री गणेशाय नमः
श्री राम चन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं .
नव कंज लोचन कंज     मुख कर कंज पद कंजारुणं ..
कंदर्प अगड़ित अमित    छवि नव नील नीरद सुन्दरम .
पट पीत मानहु तड़ित रूचि सुचि नौमी जनक सुतावरं ..
भजु दीन बन्धु दिनेश         दानव दैत्य वंस निकन्दनं .
रघु नन्द आनन्द कंद         कोशलचंद दशरथ नंदनम .
सिरमुकुट कुंडल तिलक         चारू उदारु अंग विभूश्नं
आजानु भुज शर चाप        धर संग्राम जित खर दूषणं
इति वदति तुलसीदास        शंकर शेष मुनि मन रंजनं
मम ह्रदय कंज निवास      करू कामादि खल दल गंजनं
                       -----श्री गोस्वामी तुलसी दास जी

कुछ घरेलू नुश्खे ---- इन्हें आजमा कर देखे !

श्री गणेशाय नमः

कुछ घरेलू नुश्खे ---- इन्हें आजमा कर देखे !

दांत दर्द में   
हल्दी और सेंधा नमक महीन पीस कर , उसे शुद्ध  सरसों के तेल में मिला कर सुबह शाम मंजन करने से दाँतों का दर्द बंद हो जाता है .

बच्चो के पेट में कीड़े
छोटे बच्चो के पेट में कीड़े हो तो सुबह और शाम में प्याज का रस गरम करके करीब १ तोला ( लगभग १२ ग्राम ) पिलाने से कीड़े मर जाते है .

शिशुओ का वमन
पके अनार के फल का रस कुनकुना गरम करके प्रातः , मध्ध्यान , सायं को एक एक चम्मच पिलाने से शिशु वमन बंद हो जाता है .

आग से जल जाने पर
कच्चे आलू पीसकर उसका रस निकाल ले , फिर जले हुए स्थान पर उस रस को लगाने से आराम मिलेगा .
इमली की छाल जलाकर उसका महीन चूरन बना ले उस चूरन को गाय के घी में मिला कर लगाने से जले हुए स्थान पर आराम मिलेगा .

पेशाब में जलन
ताजे करेले को महीन महीन काट ले , फिर हाथों से अच्छी तरह से मल दे ..फिर उस करेले के रस को किसी शीशे के बर्तन में इकठा कर ले . फिर वही पानी पचास ग्राम की खुराक बना कर दिन में ३ बार पीने से जलन शांत हो जाती है .

जुकाम
 २५० ग्राम गाय का दूध गरम करके उसमे १२ दाना काली मिर्च और १२ ग्राम मिश्री पीस ले फिर दूध में मिला कर सोते समय रात में पीले जल्दी ही जुकाम ठीक हो जाएगा .

फोड़े
नीम की मुलायम पत्तियों को पीस कर गाय के घी में पका कर ( ज्यादा गरम न हो ) हलके कपडे के सहारे बंधने से फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जाएगा .


                            कृपया गंभीर स्थितियों में केवल डॉक्टर को दिखाए ..केवल नुख्सो के सहारे न रहे.

प्रणाम 
स्वामी अनंत चैतन्य 
लखनऊ

सरलता से जिये

श्री गणेशाय नमः
सरलता से जिये
आज मनुष्य अपनी समस्त ऊर्जा का छरण विशिष्टता को प्राप्त होने के लिए ही कर रहा है! . समाज में , परिवार में राष्ट में विशिष्ट पहचान हेतु अपनी समस्त ऊर्जा नष्ट  किये जा रहा है . व्यक्ति सारे कार्यो को , विचारो को सहज भाव ने न कर के असहज भाव से कर रहा है , और एक दूसरे में होड़ है की हम दूसरे को कुचलते हुए आगे निकल जाए .
क्या कभी पृकृति  में असरल भाव देखा है ? नदिया प्रयास रहित बस बहती जा रही है , मंजिल पाने के लिए कोई आपाधापी नहीं . सूर्य प्रातः   होते ही नित्य की भाति सरल भाव से जगत को प्रकाशित करता रहता है . पुष्पों को खिलने के लिए अतिरिक्त प्रयास  नहीं करना पड़ता . वृक्षों पर पत्तो को निकलने और नष्ट  होने में उसे कोई प्रयास नहीं करना होता . कभी चहचहाते पक्षियों का कलरव सुना है ? उनमे कोई द्वन्द नहीं कोई आपा धापी नहीं बस अपनी मस्ती में , अपनी सरलता में विद्यमान है .
ऋतुये हमेशा सहज रूप में सरलता से बदलती रहती है जब गर्मी हुयी बादल बने  .समय आने पर अपने को स्वतः ही अपने आप को समाप्त  कर लिया सब कुछ सहज ठंग से .............सब कुछ ठीक उसी तरह जैसे हमें साँसे लेने और छोड़ने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता बस सब सहज ही घट  जाता  है .
सरलता ही हमें अपने आप विशिस्ट बना देती है उसके लिए अतिरिक्त प्रयाश नहीं करना होता . जितने भी महा पुरुष हुए है सबका जीवन बहुत सहज था . भगवान् श्री राम का जीवन तो पूरा का पूरा सहजता और सरलता से भरा हुवा था ..सारी बाते बहुत सहज ढंग से हमेशा रखते थे . पिता द्वारा बनबास दिए जाने पर अपनी सगी माँ कौशिल्या से उन्होंने सिकायत की जगह बड़े सहज भाव से कहा की मुझे तो पिता ने कानन ( जंगल ) का राज दिया है . कितनी सहजता ..कोई शिकायत का भाव नहीं . इसी तरह राट्र पिता महत्मा गाँधी का जीवन बहुत सरलता सहजता से भरा हुवा रहा जिसने उनको विशिस्ट बनाया  .
कभी किसी छोटे बच्चे को गौर से देखे उसकी हसी , मुस्कराहट में कितनी सरलता होती है किसी को देखते है तो पूरी दृष्टी से न किसी के प्रति राग न द्वेष इसी लिये उनको भगवन का स्वरुप कहते है ...
अंत में बस इतना ही हवा की रुख की तरह सरलता से सहजता से इस जीवन को बहने दे . विशिष्टता अपने आप मिल जाएगी उसके लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं  .

प्रणाम 

स्वामी अनंत चैतन्य 
लखनऊ  

रविवार, 11 जुलाई 2010

NAVADHA BHAKTI ---------RAM CHARIT MANAS

श्री गणेशाय नमः

नवधा भक्ति

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा .  दुसरि  रति मम कथा प्रसंगा ..

गुर पद पंकज सेवा             तिसरी भगति अमान .
चौथि भगति मम गुण गन करई कपट तजि गान .. 

मंत्र जाप मम दृढ बिश्वाशा .            पंचम भजन सो बेद प्रकाशा ..
छठ दम सील बिरति बहु करमा  . निरत निरंतर सज्जन धरमा ..
सातव सम मोहि मय जग देखा .      मोते संत अधिक करि लेखा ..
आठव जथा लाभ संतोषा .                 सपनेहु नहीं देखे पर दोषा   ..
नवम सरल सब सं छलहीना .     मम भरोस हिय हरस न दीना

                                    ---राम चरित मानस , अरण्य काण्ड









शनिवार, 10 जुलाई 2010

THANKS TO GOD

श्री गणेशाय नमः

श्री सद गुरुवेनमः


मित्रो ,

यह मेरा पहला ब्लॉग है , जहाँ मै अपनी बाते अपनों से कर रहा हूँ । आशा है आपको अपनापन लगेगा ।

सबसे पहले मै इश्वर को धन्यवाद् देना चाहता हूँ ।


परमेश्वर को धन्यवाद् देना कभी भूले



इस बात पर क्या हमने कभी विचार किया है कि पूरे अंतःकरण से इश्वर को धन्यवाद दिया है । उत्तर स्वयं में ही ढूँढना है । इश्वर ने पूरे जगत के सम्पूर्ण प्राणी , जड , चेतन , सम्पूर्ण कण कण को किस तरह से ध्यान रखा है ।

भगवान् ने सारे महत्व के कार्य किसी के सहारे नहीं छोड़े जैसे खाने का काम उसने व्यक्ति को दिया लेकिन अन्य कार्य जैसे भूख पैदा करना , खाना पचाना , स्वास लेना , ह्रदय धडकना आदि आदि --- स्वयं अपने हाथे में लिए । सोचो अगर एह कार्य भगवान् व्यक्ति पर छोड़ देता तो जरूर ही कोई गलती कर जाता ।

यह प्रकृति , हरी भरी धरती , नीला गगन , चहचहाते पक्षी , मुस्कुराते फूल , सुन्दर एवं विशाल समुन्दर किस ने बनाये है । यह कौन चित्रकार है , कौन कल्पनाकार और शिल्पी है .... निश्चित ही वह और कोई नहीं भगवान् के सिवाय । दिन में प्रकाश , रात्री में चांदनी की नरम शीतलता रितुवो में समयानुसार परिवर्तन , भाति भाति की वनस्पतीय और न जाने क्या क्या सर्जन करता ने हमारे लिए उपलभध कराये है , कितना ध्यान रखा है हम सभी का ।

अंत में केवल इतना ही की हमें निरंतर उसकी कृपा का अनुभव करते रहना चाहिए । पूर्ण कृतज्ञता से उसका धन्यबाद करता रहना चाहिए ..बस इतनी सोच हमें कहा से कहा पंहुचा देगी शायद हमे इसका अंदाजा तक नहीं । यदि प्रतिपल यह याद रखना संभव न हो सके तो कम से कम एक समय नकाल कर उसकी प्रतिपल बरसती कृपा का धन्यवाद अवश्य ही करे ।

प्रणाम

स्वामी अनंत चैतन्य

लखनऊ