सोमवार, 12 जुलाई 2010

सरलता से जिये

श्री गणेशाय नमः
सरलता से जिये
आज मनुष्य अपनी समस्त ऊर्जा का छरण विशिष्टता को प्राप्त होने के लिए ही कर रहा है! . समाज में , परिवार में राष्ट में विशिष्ट पहचान हेतु अपनी समस्त ऊर्जा नष्ट  किये जा रहा है . व्यक्ति सारे कार्यो को , विचारो को सहज भाव ने न कर के असहज भाव से कर रहा है , और एक दूसरे में होड़ है की हम दूसरे को कुचलते हुए आगे निकल जाए .
क्या कभी पृकृति  में असरल भाव देखा है ? नदिया प्रयास रहित बस बहती जा रही है , मंजिल पाने के लिए कोई आपाधापी नहीं . सूर्य प्रातः   होते ही नित्य की भाति सरल भाव से जगत को प्रकाशित करता रहता है . पुष्पों को खिलने के लिए अतिरिक्त प्रयास  नहीं करना पड़ता . वृक्षों पर पत्तो को निकलने और नष्ट  होने में उसे कोई प्रयास नहीं करना होता . कभी चहचहाते पक्षियों का कलरव सुना है ? उनमे कोई द्वन्द नहीं कोई आपा धापी नहीं बस अपनी मस्ती में , अपनी सरलता में विद्यमान है .
ऋतुये हमेशा सहज रूप में सरलता से बदलती रहती है जब गर्मी हुयी बादल बने  .समय आने पर अपने को स्वतः ही अपने आप को समाप्त  कर लिया सब कुछ सहज ठंग से .............सब कुछ ठीक उसी तरह जैसे हमें साँसे लेने और छोड़ने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता बस सब सहज ही घट  जाता  है .
सरलता ही हमें अपने आप विशिस्ट बना देती है उसके लिए अतिरिक्त प्रयाश नहीं करना होता . जितने भी महा पुरुष हुए है सबका जीवन बहुत सहज था . भगवान् श्री राम का जीवन तो पूरा का पूरा सहजता और सरलता से भरा हुवा था ..सारी बाते बहुत सहज ढंग से हमेशा रखते थे . पिता द्वारा बनबास दिए जाने पर अपनी सगी माँ कौशिल्या से उन्होंने सिकायत की जगह बड़े सहज भाव से कहा की मुझे तो पिता ने कानन ( जंगल ) का राज दिया है . कितनी सहजता ..कोई शिकायत का भाव नहीं . इसी तरह राट्र पिता महत्मा गाँधी का जीवन बहुत सरलता सहजता से भरा हुवा रहा जिसने उनको विशिस्ट बनाया  .
कभी किसी छोटे बच्चे को गौर से देखे उसकी हसी , मुस्कराहट में कितनी सरलता होती है किसी को देखते है तो पूरी दृष्टी से न किसी के प्रति राग न द्वेष इसी लिये उनको भगवन का स्वरुप कहते है ...
अंत में बस इतना ही हवा की रुख की तरह सरलता से सहजता से इस जीवन को बहने दे . विशिष्टता अपने आप मिल जाएगी उसके लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं  .

प्रणाम 

स्वामी अनंत चैतन्य 
लखनऊ  

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