श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः
सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )
देखने की कला
सम्यक दर्शन ही सत्य है !
देखना ही करना है !
तादात्म्य के बिना देखे !
ज्ञान , अज्ञान , स्मृति , शब्द व् मूर्छा के बिना देखे !
तुम्हारी धारणाये देखने में बाधा है ,
उन्हें गिरा दो !
देखना प्रेम की घटना है !
प्रेम से भर कर जब तुम देखते हो
तुम ऊर्जावान हो जाते हो !
प्रेम रहित देखने से आँखों
के माध्यम से सर्वाधिक ऊर्जा नष्ट होती है !
तुम्हारे विचार व आँखों की गति आपस में जुडी है !
आँखे एक प्रवाह है !
आँखों के प्रवाह में एक लयबद्धता , पद्धति
व प्रक्रिया है , उसके प्रति सजग हो !
आँखे पार्थिव व् अपार्थिव के बीच का एक सेतु है !
जो पाना है तुम वही देखते हो !
तुम्हारी दृष्टि ही तुम्हारी श्रृष्टि है
तुम्हारा जीवन व तुम्हारा जगत एक दर्पण
की भाति है , उसमे स्वयं को देखो !
दृश्य की खोज अधार्मिक और दृष्टा की खोज
धार्मिक है !
न दृश्य बने , न दर्शक बने , दृष्टा बने !
समग्रतः देखे , अंशतः नहीं !
जो भी तुम देख पाते हो , वह तुम नहीं हो !
देखते देखते ही तुम पाते हो !
और द्रष्टा व द्रश्य है
और सृष्टा व द्रष्टा के साथ ही
सारी दृष्टी का खो जाना ही मोक्ष है !
( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )
संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ
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