गुरुवार, 29 जुलाई 2010

देखने की कला

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः

सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )


देखने की कला

सम्यक दर्शन ही सत्य है !

देखना ही करना है !

तादात्म्य के बिना देखे !

ज्ञान , अज्ञान , स्मृति , शब्द व् मूर्छा के बिना देखे !

तुम्हारी धारणाये देखने में बाधा है ,

उन्हें गिरा दो !

देखना प्रेम की घटना है !

प्रेम से भर कर जब तुम देखते हो

तुम ऊर्जावान हो जाते हो !

प्रेम रहित देखने से आँखों

के माध्यम से सर्वाधिक ऊर्जा नष्ट होती है !

तुम्हारे विचार व आँखों की गति आपस में जुडी है !

आँखे एक प्रवाह है !

आँखों के प्रवाह में एक लयबद्धता , पद्धति

व प्रक्रिया है , उसके प्रति सजग हो !

आँखे पार्थिव व् अपार्थिव के बीच का एक सेतु है !

जो पाना है तुम वही देखते हो !

तुम्हारी दृष्टि ही तुम्हारी श्रृष्टि है

तुम्हारा जीवन व तुम्हारा जगत एक दर्पण

की भाति है , उसमे स्वयं को देखो !

दृश्य की खोज अधार्मिक और दृष्टा की खोज

धार्मिक है !

न दृश्य बने , न दर्शक बने , दृष्टा बने !

समग्रतः देखे , अंशतः नहीं !

जो भी तुम देख पाते हो , वह तुम नहीं हो !

देखते देखते ही तुम पाते हो !

और द्रष्टा व द्रश्य है

और सृष्टा व द्रष्टा के साथ ही

सारी दृष्टी का खो जाना ही मोक्ष है !



( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )


संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें