गुरुवार, 22 जुलाई 2010

सदगुरु तेरी कृपा अनंत --भाग 1

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः

सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )


प्रिय मित्रो ,
                 गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसार पर आप सभी को बहुत बहुत हार्दिक अभिवादन ! अपनों से अपनी बात  में मै अपने परम श्रद्धेय सदगुरु श्री कुणाल कृष्ण से हुई कुछ अन्तरंग बाते बताना चाहता हूँ ! सर्व प्रथम सदगुरु देव के बारे में मै आप से संछेप में  कुछ बताना चाहता हूँ !.

एक संछिप्त परिचय
                 सम्बुद्ध रहस्य दर्शी , सदगुरु देव सतत प्रवाहमान धारा में एक खूबसूरत मोड़ है ! यह मनुष्यता में छाये घने अन्धकार को चीर कर उभरे हुए स्वानुभूत आद्द्यात्मिकता  के स्वाभाविक आलोक है ! सदगुरु देव के अनुसार अध्यात्म  एक अनंत यात्रा है इस कारण से  इन्होने अनंत पथ नामक  एक संस्था को संगठित किया ! गुरुदेव  का व्यक्तित्व किसी धर्म विशेष की सीमा में कैद नहीं है वह तो बस मानो धार्मिकता के अभी अभी खिले हुए एक ताजे कमल के फूल है !
                 इनके एक एक शब्द  हमें नि शब्दता की और ले जाते है और गुरुदेव  की उपस्थिति मात्र ही शून्य के आयाम का अद्भुत अनुभव करा देती  है जिसकी अनुभूति मात्र ही रोमांच उत्पन्न कर देती है !
                सद गुरु के पावन  सानिध्य में प्रति बुधवार को inner hormony  meditation  और पूर्णिमा , अमावस्या को self  remembering meditation ( S R M ) तथा समय समय पर अंतर्यात्रा  ध्यान शिविरों  का आयोजन होता  रहता  है . सदगुरु देव ocult sceinces , healing  आदि विषयों पर गुह्य ज्ञान करा कर  अनंत पथ के पथिको को अनुग्रहित करते रहते है .
( क्रमशः......)

सदगुरु के साथ अन्तरंग वार्ता

                  आज गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रातः  ११ बजे का  समय प्राप्त  हुआ , गुरुदेव द्वारा कुछ कार्य बताया गया था , उसे सौपने के बाद गुरु महिमा पर वार्ता करने का दुर्लभ सयोग प्राप्त हुआ  ,

प्रश्न  ------ ------गुरु गीता के सूत्रों पर बोलते हुए पिछली sittings में जो आप ने कहा था की सदगुरु के बिना सारे शास्त्र  और विधिया व्यर्थ है , इस का तात्पर्य समझ में नहीं आया ,क्योकि शास्त्र भी तो गुरुवो के ही बचन है , तो वह व्यर्थ कैसे हो सकते है ?

सदगुरु देव ----- देखो इस का गूढ़ अर्थ समझो . एक सदगुरु शब्द से पार की यात्रा है . शब्द  से निःशब्द की यात्रा है . वस्तुतः सदगुरु शब्दों  के माध्यम से कुछ दे नहीं रहा होता है शब्दों शास्त्रों से निकले है , और शास्त्र  तुम्हे कहाँ  तक ले जाते है ? तर्कों , विधियों , कर्म कांडों की व्यवस्थाओ के एक बड़े जंगले तक न ! हाँ  तुम्हारा यह कहना ठीक है कि जो भी शास्त्र है उनको सदगुरुवो ने ही दिया है  लेकिन अगर तुम सब्दो तक ही अटके रहे उसी के आशक्ति में रहे तो तुम उस परम सत्य को नहीं जान पावोगे जो की सब्दों से कही अधिक  दूर है !

प्रश्न  - ..           लेकिन गुरुदेव.... गुरु भी तो सब्दों को  ही माध्यम बनता है ?

सदगुरु देव  .. ..नहीं ऐसा नहीं है  .. एक सदगुरु जब सब्दों के माध्यम से बोलता है तो वह सब्दों से बहुत अधिक होता है . वह उस सब्द की व्यवस्था  के साथ साथ निः शब्द  की गंध भी शिष्य के लिए लेकर आता है !  वह गंध  शिष्य के अंतरतम में प्रवेश करती है ! शास्त्रों से गुजरते हुए तुम और अधिक  ग्यानी हो सकते हो , लेकिन जब तक एक सदगुरु के माध्यम से तुम्हारे अंदर बोध न घटेगा शास्त्र  समझोगे कैसे ? तुम शास्त्रों के  मर्म को समझ न सकोगे . यही तो गुरु गीता के सूत्रों में शिव ने बोला है ,
                  इस बारे में मै तुमको एक बुद्ध से बहुत प्रसिद्द घटना बताता हो , सुनो......
                  कहते है कि  एक दिन सुबह गौतम बुद्ध  हाथ में कमल का फूल लिए हुए अपने शिष्यों के बीच आ गए . वह हमेशा आते है तो कुछ बोलते है ,ध्यान के बाद देशना देते है उनकी देशना  को दूर दूर से आये शिष्य बहुत ध्यान पूर्वक सुनाने के लिए एकत्र होते थे . किन्तु आज वह मौन है ,
                 सदगुरुवो के बारे में निश्चित होना एक बहुत बड़ा भ्रम  है ..पता नहीं कब क्या करेंगे क्या कहेगे यह सब रहस्यमयी  होता है बाहर परिधि पर बैठ कर शिष्य कुछ भी तय नहीं कर सकते . आज शिष्यों को लगा शायद  गौतम बुद्ध  का स्वस्थ्य ठीक नहीं है ! बुद्ध को  न सुन पाने के कारण शिष्यों में बेचैनी बढ़ने लगी एक एक पल जैसे जैसे बीत रहा था शिष्य बहुत ही बेचैन हो रहे थे ..लेकिन शिष्यों  के बीच बैठा  एक शिष्य महाकस्यप अचानक जोर जोर से हसने लगा , हमेशा शांत रहने वाला महाकश्यप आज ठहाके मार मार के हसे जा रहा था  ! शिष्यों को लगा कि लगता है आज बुद्ध के साथ साथ इसको भी कुछ हो गया है !
                ...किन्तु कुछ छण के  बाद बुद्ध ने महाकश्यप को अपने पास बुला कर बैठाया और उसे वह कमल का फूल हाथो में पकड़ा दिया  ...आज गौतम बुद्ध ने  तो  निः शब्द कि दशा में  सभी कुछ महाकश्यप को दे दिया  .
                   सभी जानते है इन्ही महाकश्यप से ही बाद में zen  परंपरा का प्रारंभ हुआ  ! तो ..सब कुछ शास्त्रों  से नहीं मिलता !
                                                                                                                                     ( क्रमशः .......)

                           आज की बात इसी कामना से समाप्त करते है , की मुझे कमल तो अभी नहीं प्राप्त को पाया है हाँ  सदगुरु के चरण कमलों में  स्थान तो प्राप्त ही है ..बहुत बहुत  आभार है गुरु देव का जो मेरी जिज्ञाशाओ  का समाधान करते रहते है !

प्रणाम ,

अनंत पथ का एक पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ








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