सोमवार, 26 जुलाई 2010

मेरी डायरी के कुछ पन्ने

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः


सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )

                         आज की अमृत बेला कुछ अलग ही थी , कई अर्थो में अलग ! लगता था कल से शुरु होनेवाले आध्यात्मिक माह ( श्रावण माह ) के स्वागतार्थ कुछ ज्यादा ही उल्लास लिए है , केन्तु उस से भी कही ज्यादा आह्लादित इस लिए थी की आज एक महान पर्व गुरु पूर्णिमा जो था !

                     गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरु सत्ता की चेतना का पूर्ण प्रभुता के साथ अवतरण का दिन !

                   वैसे तो इस धरा पर जन्म लेते ही प्रथम गुरु माँ होती है , फिर अच्छर ज्ञान हेतु अध्यापक के रूप में गुरु प्राप्त होते है , किन्तु आध्यत्मिक गुरु जिसे सदगुरु कहते है , का महत्व कई मायने में बहुत अधिक है, क्योकि वह परम लक्ष्य के ओर शिष्य को समय समय पर प्रत्यक्ष - परोक्ष रूप से दिशा निर्देश प्रदान कर्ता है !

                 " अनंत " ( गुरु गृह ) में आज सायं ५ बजे से गुरु दर्शन का एक अद्भुत कार्यक्रम होना था , मुझे भी उस बुद्ध क्षेत्र की अमृत वर्षा में सरोबोर होना था सो समय से पहुच गया , क्यों की मेरे अन्दर उस की एक एक बूँद पाने का लालच था ! अंदर प्रवेश होते ही आज कुछ अजीब से अनुभूति हो रही थी , चेतना का प्रवाह उच्चतर स्तर पर था !

                  सायं ५.३० पर सदगुरु ने दर्शन दिए ! आज सदगुरु का मुख मंडल देखते ही बनता था , उनके मुखमंडल की आभा सभी ओर सामान रूप से अपनी रश्मिया बिखेर रही थी , मानो प्रकाश का एक झरना फूट पड़ा हो , उनकी उपस्थिति मात्र ही सम्पूर्ण वातावरण को मनोहारी एवं सुरभित कर रही थी !

              सदगुरु देव द्वारा सभी को प्रेम और शुभासीस मिली , सभी शिष्य कृतकृत हो उठे थे , बड़ा ही भाव पूर्ण , अवर्णनीय वातावरण था , बस उन छनो का अनुभव मात्र ही रोमांचित कर देना वाला है ! कुछ समय पश्चात सद्गुरु देव द्वारा ब्रह्मांड के समस्त सद्गुरुवो की चेतन का विशेष आवाहन किया , इस प्रक्रिया के पश्चात तो प्रतीत हो रहा था की यह स्थान उन परम चेतनाओ के लिए बहुत कम पड़ गया है ! सभी साधक इतने मस्त दिख रहे थे जैसे मदहोश हो गए हो ! मस्ती के उस आलम का वर्णन शब्दों में संभव नहीं .!

                फिर कुछ समय पश्चात जब सब वापस अपने शरीर में लौटे ,तो सदगुरु देव ने कहा जिस को जो भाव आ रहे हो , ह्रदय के उदगार हो , प्रस्तुत करना चाहे तो कर सकते है ! किसी ने गीत , किसी ने संगीत तो किसी ने आध्यात्मिक अनुभव बांटे ! वस्तुतः मेरे पास तो सारे शब्द लुप्त हो चुके थे , निः शब्द की स्थिति ! हां मेरी आँखों जरूर बीच बीच में अश्रुपात कर श्रद्धा सुमन अर्पित कर लेती थी !

              आज सचमुच ऐसा लग रहा था कि मेरे सदगुरु शरीरी नहीं अशरीरी है , उनकी चेतना सभी के दिलो में बसी हुयी है !

            और क्या कहूं ....


अनत पथ का पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य

लखनऊ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें