श्री गणेशाय नमः
' देवता ' अर्थात हमेशा देने में संलग्न !.. जिसकी मूल पृकृति और प्रवृति हमेशा देने की ही हो उस को ही देवता कहते है .हिन्दू गन्थो में ३३ कोटि देवता बताये गए है , संभवतः जब यह गिनती कि गयी होगी उस समय के समस्त मानवो को भी इस में जोड़ा गया होगा क्यों कि उस समय के मानवो में देवत्व के गुण मूल रूप से रहे होंगे साथ ही साथ उनकी शक्तियों को देवि के रूप में जोड़ा गया होगा क्योकि बिना किसी शक्ति के कोई देव पूर्ण नहीं होता . देव समूह विशेष ऊर्जा अपने स्रोतों , से अपने पराक्रम से प्राप्त करके सर्व साधारण के लिए बिना भेदभाव के प्रदान करते थे .यहाँ स्रोत से तात्पर्य परमेश्वर है क्यों कि वही तो सब का मूल श्रोत है . सवित ( सूर्य ) देवता परमेश्वर से ऊर्जा ग्रहण करके ब्रह्माण्ड में सदैव प्रवाहित करते रहते है इसी प्रकार वायु देवता , वरुण देवता आदि आदि . उस मूल श्रोत से तत्त्व प्रधान ऊर्जा प्राप्त कर सर्व साधारण को हमेशा बिना किसी भेदभाव के प्रवाहित करते रहना ही देवतावो का मुख्य कार्य अवं प्राकृतिक धर्म है .
...सोचो अगर देवता अपना प्राकृतिक गुण धर्मं छोड़ दे दो ? पृकृति में असंतुलन पैदा हो जाएगा , सभी का अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा साथ ही उस देवता का भी .
कहने का तत्पर पाठक गण समझ गए होंगे . सोचो ! यदि इस ब्रह्माण्ड से प्राप्त प्राण वायु को हम अपनी नाशिका से केवल प्राप्त ही करते रहे वापस न लौटाए तो कितने पल जी सकते है . यदि भोजन को मुह कहे कि हम अपने पास ही रखेगे तो कितना और कितनी देर रख सकता है उसको आगे भेजना ही पड़ेगा यही मूल नियम है .. आज समाज में जो असंतुलन और समस्याए ही समस्याए है उस का मुख्य कारण ही व्यक्ति में देवत्व प्रकृति का आभाव है और केवल जरूरत से ज्यादा संचय की प्रवृति . पृकृति पेड़ पौधे नदिया सब हमारे लिए उदाहरन है
बृक्ष कबहु नहि फल भखै नदी न संचय नीर . परमारथ के कारजे साधुन धरा सरीर
इश्वर प्रदत्त , समाज प्रदत्त , पुरुषार्थ प्रदत्त जो भी सुख साधन है उस को मूलतः अपने पास न रख कर कुछ न कुछ जरूर समाज को रास्ट्र को लौटना चाहिए . दान देने का जो सूत्र शाश्त्रो में दिया गया है वह इसी पर आधारित है ..जरूरत से ज्यादा संचय तालाब पोखर के पानी के तरह हमारे अन्तः करण में सडन , गन्दगी उत्पन्न कर देता है अंत में इतना ही कि हमें इश्वर प्रदत्त सभी सुख साधनों धन आदि का अपव्यय न करके यथा संभव देवत्व भाव से समाज को विभिन्न रूपों में लौटते रहना चाहिए इससे समय चक्र को , अस्तित्व को सहयोग होगा
प्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ
मन को स्थिरता देती रचना.
जवाब देंहटाएंआभार.
ज्ञान के कुछ नये दरवाज़े खोलती पोस्ट .... बहुत अनुपान ...
जवाब देंहटाएंआप सभी को बहुत बहुत साधुवाद , आप ने समय निकाल कर मेरी रचना को पढ़ा . उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभार
जवाब देंहटाएंप्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य