मंगलवार, 13 जुलाई 2010

कन्याओ के वैवाहिक विलम्ब हेतु रामचरित मानस से एक अचूक , अनुभूत मंत्र प्रयोग

श्री गणेशाय नमः
कन्याओ के वैवाहिक विलम्ब हेतु रामचरित मानस से एक अचूक , अनुभूत मंत्र प्रयोग

                           आज के युग में कन्याओ की शादी में देर होना एक आम बात हो गयी है . जिसका कुछ कारण सामाजिक परिस्थितिया , कुछ समय रहते शादी  न करना   , लोग पंडितो के पास जाते है लेकिन तब तक योग तो करीब करीब निकल चुके होते है बस प्रयोग  ही शेष रहते है . विषय की चर्चा में न जाकर एक बहुत अनुभूत प्रयोग बता रहे है , माँ भगवती की असीम अनुकम्पा से अब तक असंख्य कन्याये शादी करने के पश्चात सुखमय विवाहित जीवन का का आनंद ले रही है  .
           शुभ मुहूर्त में प्रातः काल उठकर माँ गौरी का ध्यान  कर , किसी चौकी पर पीले आसन पर माँ गौरी की फोटो स्थापित कर  ले , स्वयं पीले वस्त्र पहन कर पीले फूलो और  हल्दी  अछ्छ्त  से माँ का पूजन करे ध्यान करे ,एक देसी घी का दीपक जला ले , धूप बत्ती  जला ले ,  मन बहुत शुद्ध और शांत रखे . आसन पीला हो अपने लिए उस पर बैठ कर ही पूजा करे . यह प्रयोग ४१ दिन का है ( जिन दिनों में बेटियों को पूजा वर्जित हो उन दिनों में माताए यह कार्य करले अथवा दिन आगे गिनले )   यह पाठ  ११ या २१ बार पाठ करना है . पाठ के उपरान्त  थोड़ी देर ध्यान   करे और मनपसंद वर द्वारा चयन किया जाना विचारो में लाये . प्रयोग के अंतिम दिन समापन यथा विधि   हवन  
से करे . कन्या भोज कराये .    मंत्र की चौपाईया निम्नानुसार है ;

जय जय जय गिरिराज किशोरी       जय महेश मुख चंद किशोरी
जय गजबदन षडानन माता     जगत जननि दामिनि द्विति गाता
नहीं तव आदि मध्य अवसाना       अमित प्रभाव वेदु नहीं जाना
भव भव विभव पराभव कारिणि  विश्व विमोहिनि स्वबस बिहारिनि
पति देवता सुतीय महु         मातु प्रथम तव रेख
महिमा अमित न सकहि   कही सहस सारदा सेष 
सेवत तोहि सुलभ फल चारी              बरदयिनी त्रिपुरारी पियारी
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे         सुरनर मुनि सब होहि सुखारे
मोर मनोरथ जानहु नीके              बसहु सदा उरपुर सब ही के
कीन्हेउ प्रकट न कारन तेहि             अस कहि चरण गहे बैदेही
विनय प्रेम बस भई भवानी            खसी माल मूरति मुसुकानी
सादर सिय प्रसाद सिर धरेऊ         बोली गौरी हरसि हिय भरेउ
सुनु सिय सत्य असीस हमारी         पूजहि मन कामना तुम्हारी
नारद बचन सदा सुचि साचा     सो बरु मिलिहि जाहि मन राचा
मनु जाहि रांचेयु मिलहि         सो बरु सहज सुंदर सावरो
करुना निधान सुजान                     सील सनेहु जानत रावरो
एहि भांति गौरि असीस सुनि       सिय सहित हिय हरसी अली 
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि            पुनि मुदित मन मंदिर चली 

जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि
मंजुल मंगल मूल           बाम अंग फरकन लगे

( राम चरित मानस - बाल काण्ड २३४-२३६ )
गोस्वामी तुलसी दासजी द्वारा विरचित



प्रणाम
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ





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