श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः
सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )
सुनने की कला
सुनना मौन में ही संभव है !
पूरी तरह विश्रांत होकर सुने !
पूरी तरह सजग होकर सुने !
अपने आतंरिक वार्तालाप को तोड़ दे ,
और तुलना रहित होकर सुने !
सहमति और असहमति को गिराकर ,
निरुद्देस्य होकर सुने !
ऐसे सुने जैसे पहली बार सुन रहे हो !
सुनते हुए केवल सुने , अपने भीतर
कोई व्याख्या या विश्लेषण न उठने दे !
कान पर पड़ती चोट तुम्हारी आँख खोल देगी !
शब्दों को सुने और शब्दों के पार देखे !
श्रोता से दृष्टा तक की यात्रा !
सुनने की कला आते ही उत्पन्न होती है
देखने की कुशलता !
सुनना तभी पूरा होता है जब तुम उसे भी
अनुभव करते हो जो सुन रहा है !
सम्यक श्रवण साक्षी भव में ले जाता है !
( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )
संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ
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