शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

बोलने की कला

श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः
सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )


बोलने की कला


तुम्हारा बोलना आपसी समझौता है अपनी -अपनी

विछिप्तता को बाहर फेकने का !

बोलना सिर्फ खूँटी खोजना है अपनी बेचैनी को

टांगने के लिए ! तुम अपने बोलने में दूसरे का

उपयोग कूड़ेदान की तरह करते हो !

जब बोलने के लिए कोई नहीं मिलता तो तुम

अपने से ही बोलने लगते हो !

दूसरे से बोलने में सार्थकता है , अपने से ही

बोलना पूरी तरह विछिप्तता है !

लेकिन सजग होकर देखो की जब तुम दूसरे से

बोल रहे होते हो तो सचमुच दूसरे से बोल रहे होते हो !

तुम बात करते हो कुछ छिपाने के लिए , न की कुछ कहने के लिए !

तुम इसी लिए निरंतर बोलते रहते हो की कही

तुम्हारा तुमसे आमना सामना न हो जाए !

तुम वाणी से ही नहीं पूरे शरीर से बोलते हो !

तुम्हारा बोलना आइसबर्ग की तरह है ! जितना

तुम बोलते हो उससे कई गुना इसके पीछे

छिपा रहता है - जिसे तुम बिना बोले कहते हो !

बोलने की कला सीखो ! इसके लिए इन सारी

बातो पर सजग रहो !

यह सजगता व्यर्थ के बोलने को समाप्त कर देगी

और तुम्हारे बोलने में अर्थ प्रकट होने लगेगा !



( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )


संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक

स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ

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