श्री गणेशाय नमः
श्री सद गुरुवे नमः
सद गुरु श्रदेय श्री कुणाल कृष्ण
( सम्बुद्द रहस्यदर्शी एवम संस्थापक अनंत पथ )
बोलने की कला
तुम्हारा बोलना आपसी समझौता है अपनी -अपनी
विछिप्तता को बाहर फेकने का !
बोलना सिर्फ खूँटी खोजना है अपनी बेचैनी को
टांगने के लिए ! तुम अपने बोलने में दूसरे का
उपयोग कूड़ेदान की तरह करते हो !
जब बोलने के लिए कोई नहीं मिलता तो तुम
अपने से ही बोलने लगते हो !
दूसरे से बोलने में सार्थकता है , अपने से ही
बोलना पूरी तरह विछिप्तता है !
लेकिन सजग होकर देखो की जब तुम दूसरे से
बोल रहे होते हो तो सचमुच दूसरे से बोल रहे होते हो !
तुम बात करते हो कुछ छिपाने के लिए , न की कुछ कहने के लिए !
तुम इसी लिए निरंतर बोलते रहते हो की कही
तुम्हारा तुमसे आमना सामना न हो जाए !
तुम वाणी से ही नहीं पूरे शरीर से बोलते हो !
तुम्हारा बोलना आइसबर्ग की तरह है ! जितना
तुम बोलते हो उससे कई गुना इसके पीछे
छिपा रहता है - जिसे तुम बिना बोले कहते हो !
बोलने की कला सीखो ! इसके लिए इन सारी
बातो पर सजग रहो !
यह सजगता व्यर्थ के बोलने को समाप्त कर देगी
और तुम्हारे बोलने में अर्थ प्रकट होने लगेगा !
( सदगुरु श्रद्धेय श्री कुणाल कृष्ण द्वारा रचित अनंत पथ के मित्र से संगृहीत रचना )
संग्रह कर्ता
अनंत पथ का एक पथिक
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ
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