" प्रेम " की रेखा गणित
" प्रेम " दो विपरीत ध्रुवों पर स्थित .
दो बिन्दुओं से निर्मित .
रेखा नहीं है !
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समानांतर विचारों से युत
दो रेखाए भी नहीं !
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आपस में क्रास करती ,
आपस में क्रास करती ,
एक दूजे का हृदय चीरती ,
रेखा तो कदापि नहीं !
" प्रेम " तो पवित्र मिलन है
तन मन व् आत्मा के तल का !
तीनो मिलकर
एक पवित्र त्रिकोण बनाते है !
संगम होता है तीनो का
वही सिर्फ वही " प्रेम " घटता है !
रेखाए समा लेती है
एक दूजे को सहज भाव से
फिर सीमा विहीन होकर
चल पड़ती है ..साथ साथ
विराम रहित अनन्त प्रेम पथ पर !
प्यार का सिम्बल भी तो ,
त्रिकोणीय है ,
और भी विशेष हो जाती है
जब झुक जाती है
एक दूजे के लिए
ले लेती है आकार
एक दिव्य हृदय का !
ईश्वरीय " प्रेम " भी तो
दो त्रिकोणों का समागम है
जहाँ शिव शिवा विलीन हो जाते है ,
एक दूजे में ,
अर्धनारेश्वर बनकर ,
यही तंत्र का दिव्य नृत्य है
यही " प्रेम " का रेखा गणित है !!
अनन्त चैतन्य
लखनऊ