शुक्रवार, 18 मार्च 2011

हे प्रभु ! क्या मै भेट करूं ?

हे प्रभु ! क्या मै भेट करूं ?

हे प्रभु  ! मुझ को तुम्ही बताओ ,
तुमको क्या मै भेंट करूं   !!
अभिलाषा मन में  जागृत हुई,
तेरे चरणों में कुछ तो धरूं !!

मेरा क्या है ? ढूँढ रहा हूँ ,
जिससे तेरी पूजा करूं !!
दृष्टी जिधर भी फेर रहा हूँ ,
सब तेरा , अब मै क्या करूं ?

घर परिवार पुत्र दारा धन ,
तेरी कृपा से मुझे मिले !
जिसको मैंने स्वयं रचा हो ,
दिखे तो , उसको भेंट करूं !!

हाँ प्रभु ! अभी याद आया कुछ ,
इनको    मैंने    स्वयं गढ़े  !
 सींच  खाद दे इन्हें सहेजा ,
बगिया ( ह्रदय )के विष वृक्ष नए !!

अहंकार , ईर्षा , प्रमाद , मद ,
निष्ठुरता ,       वासना बड़े !
प्रभु ! सारे स्वीकार करो अब ,
यही कमाई        भेंट करूं ! !

शेष मेरा कुछ भी न रहे अब ,
पूँजी सारी   शून्य    करूं !
अनंत पथ का  पथिक बनू ,
अस्तित्व संग बहता ही रहूँ !!

 
स्वामी अनंत चैतन्य 
( अनंत पथ का पथिक )
   लखनऊ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें