इंसान की कृति को , तुम इश्वर मानते हो !
भगवान् की कृति को , नहीं पहचानते हो !!
उलझे पड़े हो तुम , प्रसाद फूल पात में !
इंसानियत का भेद करते , धर्म जात से !!
इंसान है इंसानियत की पूजा कर पहले !
पत्थर जबाब देते नहीं , चाहे जो कह दे !!
पहले करो तुम प्यार खुद से खुदा तुझ में है !
हर दिल में वह बसता है , नहीं जुदा तुझसे है !!
करूणा , दया और प्रेम को , विस्तार देता चल !
सर्वोच्च कृति भगवान् की, तो प्यार से ही मिल !!
स्वामी अनंत चैतन्य
( अनंत पथ का एक पथिक )
लखनऊ
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