शनिवार, 19 मार्च 2011

कलंकित चाँद

चौथ का चाँद

चाँद आया था ,
शाम को घर पर ,
दस्तक दिया ,
मै घर पर ही था किन्तु ,
मिला नहीं जान बूझ कर !!

सुबह से ही 
हिदायतें दी जा रही थी ,
नहीं मिलना है ,
याद दिलाया जा रहा था !
 क्या अजीब बात है 
एक दिन पहले की ही तो बात है
सारी दुनिया बेताब थी 
उसकी एक झलक पाने को 
असंख्य आँखे , अत्याधुनिक दूरबीने
कह रहे थे सभी 
छिपा है बादलों में ,
चाँद दिखता क्यों नहीं ?
बस एक बार हो दीदार ,
ताकि कल ईद हो , बांटे सब मिल प्यार !
पर आज कोई मिलना न चाहता था 
हलांकि कल सा ही सुन्दर 
और थोडा सा बड़ा था !
एक दिन में ही ऐसा क्या हुआ  ,
या उस रात कोई बड़ा गुनाह किया !


सोच रहा हूँ   !
यह दुनिया भी अजीब है
कभी हाथों हाथ लेती है ,
दिल में जगह देती है 
फिर अगले ही दिन
उठा कर गिरा देती है !!
कहते है , आज चौथ का चाँद है ,
कलंकित चाँद है 
देखोगे तो कलंक लगेगा ,
कलंक से सब डरते है ,
पर अन्दर ही अन्दर गुनाह करते है !!
भला इस चाँद का क्या दोष 
जो सुबह से ही रहे है  कोस !!

स्वामी अनंत चैतन्य 
( अनंत पथ का पथिक )
     लखनऊ
 
















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