चौथ का चाँद
चाँद आया था ,
शाम को घर पर ,
दस्तक दिया ,
मै घर पर ही था किन्तु ,
मिला नहीं जान बूझ कर !!
सुबह से ही
हिदायतें दी जा रही थी ,
नहीं मिलना है ,
याद दिलाया जा रहा था !
क्या अजीब बात है
एक दिन पहले की ही तो बात है
सारी दुनिया बेताब थी
उसकी एक झलक पाने को
असंख्य आँखे , अत्याधुनिक दूरबीने
कह रहे थे सभी
छिपा है बादलों में ,
चाँद दिखता क्यों नहीं ?
बस एक बार हो दीदार ,
ताकि कल ईद हो , बांटे सब मिल प्यार !
पर आज कोई मिलना न चाहता था
हलांकि कल सा ही सुन्दर
और थोडा सा बड़ा था !
एक दिन में ही ऐसा क्या हुआ ,
या उस रात कोई बड़ा गुनाह किया !
सोच रहा हूँ !
यह दुनिया भी अजीब है
कभी हाथों हाथ लेती है ,
दिल में जगह देती है
फिर अगले ही दिन
उठा कर गिरा देती है !!
कहते है , आज चौथ का चाँद है ,
कलंकित चाँद है
देखोगे तो कलंक लगेगा ,
कलंक से सब डरते है ,
पर अन्दर ही अन्दर गुनाह करते है !!
भला इस चाँद का क्या दोष
जो सुबह से ही रहे है कोस !!
स्वामी अनंत चैतन्य
( अनंत पथ का पथिक )
लखनऊ
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