शुक्रवार, 25 मार्च 2011

मुखौटे


मुखौटे 

उम्र  गलती  हुई !
शाम  ढलती  हुई !
डूबता  वक्त  है !
सुप्त  हुआ  रक्त  है !
मुखौटे चेहरे  पर  अब  भी ,  लगाये  बैठे  है !
दुकाने  झूठ की  सुन्दर ,     सजाये  बैठे  है  !

ये  नकली  मुस्कुराना !
फरेबों  से,  रिझाना  !
वफ़ा  और  प्यार  में ,
झूठे  व्यवहार  में !
जो  नगमे  दिल  को  छू  जाए ,बनाए  बैठे  है  !
बहुत  से  टुकडो  में  दिल  को ,सजाये  बैठे  है !   

चाहे  भगवान्  का,  घर  हो  !
चाहे  पैगम्बर  का , दर  हो  !
सौदा  कैसे   किया    जाता  ! 
बखूबी   इनको     है  आता  !
कुछ  फूल  माला  से  , उनको ,   रिझाए  बैठे  है   !
काम  करदो  मेरा  पहले , (फिर  भोग  दू ) शर्ते  लगाये  बैठे  है  !

सरल  बन जा , समय  है !
सत्यता  में ,  न  भय  है  !
हटादे       सब      मुखौटे !
मौलिकता  में,  आ  लौटे !
अभिनय  छोड़  दे      हम   , यह  नशीले  शौक  जैसे  है  !
अबसे  अब  वैसे  ही  जी ले  ,  मूलतः   में  हम  जैसे  है !


स्वामी  अनंत  चैतन्य 
लखनऊ 

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