उम्र गलती हुई !
शाम ढलती हुई !
डूबता वक्त है !
सुप्त हुआ रक्त है !
मुखौटे चेहरे पर अब भी , लगाये बैठे है !
दुकाने झूठ की सुन्दर , सजाये बैठे है !
ये नकली मुस्कुराना !
फरेबों से, रिझाना !
वफ़ा और प्यार में ,
झूठे व्यवहार में !
जो नगमे दिल को छू जाए ,बनाए बैठे है !
बहुत से टुकडो में दिल को ,सजाये बैठे है !
चाहे भगवान् का, घर हो !
चाहे पैगम्बर का , दर हो !
सौदा कैसे किया जाता !
बखूबी इनको है आता !
कुछ फूल माला से , उनको , रिझाए बैठे है !
काम करदो मेरा पहले , (फिर भोग दू ) शर्ते लगाये बैठे है !
सरल बन जा , समय है !
सत्यता में , न भय है !
हटादे सब मुखौटे !
मौलिकता में, आ लौटे !
अभिनय छोड़ दे हम , यह नशीले शौक जैसे है !
अबसे अब वैसे ही जी ले , मूलतः में हम जैसे है !
स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ
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