शुक्रवार, 11 मार्च 2011

अब सपने नहीं आते....

पता नहीं क्यों , 
अब सपने नहीं आते !
पिछली कितनी ही बितायी है ,
अनींद में , विरह भरी रातें !

क्या सपने देखने के लिए 
सोना जरूरी है  ?
दिन में भी जो मूर्छा में 
बस जिए जा रहें है !
वह बस बेवजह के ही तो 
सपने बुने जा रहे है !

लोग कहते है की बड़ा बनना है तो ,
बस बड़े बड़े सपने देखो !
अब मुझे बड़ा नहीं सरल बनना है !
मुझे अब कड़ा नहीं , तरल बनना  है !
शिव कृपा पाने के लिए ,
अमृत न सही , गरल बनना है !!

स्वामी अनंत चैतन्य 
( अनंत पथ का पथिक )
      लखनऊ



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