पता नहीं क्यों ,
अब सपने नहीं आते !
पिछली कितनी ही बितायी है ,
अनींद में , विरह भरी रातें !
क्या सपने देखने के लिए
सोना जरूरी है ?
दिन में भी जो मूर्छा में
बस जिए जा रहें है !
वह बस बेवजह के ही तो
सपने बुने जा रहे है !
लोग कहते है की बड़ा बनना है तो ,
बस बड़े बड़े सपने देखो !
अब मुझे बड़ा नहीं सरल बनना है !
मुझे अब कड़ा नहीं , तरल बनना है !
शिव कृपा पाने के लिए ,
अमृत न सही , गरल बनना है !!
स्वामी अनंत चैतन्य
( अनंत पथ का पथिक )
लखनऊ
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