शुक्रवार, 11 मार्च 2011

एक बीज हूँ , गलने को तैयार ! !












मै एक बीज हूँ ,
गलने को तैयार हूँ !
अपने आप को दे दिया 
अब अस्तित्व के सहारे !
मेरा काम हुआ खत्म ,
अब आगे उसकी मर्जी !
चाहे उगा दे ,
चाहे किसी पत्थर के नीचे 
यूं ही बस , दबा दे !
मै तो बस गलने को तैयार हूँ  !
एक बड़ा  वृक्ष बनने के लिए !
ऐसा वृक्ष जिसकी जड़े 
धंसी  रहे जमीं में 
और उसकी फुनगी 
चूमती हो आकाश !
जिसके नीचे 
पथिक विश्रांति पायें !
और ऊपर 
परिंदे राते बितायें !!
--स्वामी अनंत चैतन्य 
( अनंत पथ का पथिक  )
         लखनऊ
 

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