मै एक बीज हूँ ,
गलने को तैयार हूँ !
अपने आप को दे दिया
अब अस्तित्व के सहारे !
मेरा काम हुआ खत्म ,
अब आगे उसकी मर्जी !
चाहे उगा दे ,
चाहे किसी पत्थर के नीचे
यूं ही बस , दबा दे !
मै तो बस गलने को तैयार हूँ !
एक बड़ा वृक्ष बनने के लिए !
ऐसा वृक्ष जिसकी जड़े
धंसी रहे जमीं में
और उसकी फुनगी
चूमती हो आकाश !
जिसके नीचे
पथिक विश्रांति पायें !
और ऊपर
परिंदे राते बितायें !!
--स्वामी अनंत चैतन्य
( अनंत पथ का पथिक )
लखनऊ
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