मंगलवार, 22 मार्च 2011

अद्वैत क्या है ?

                                          अद्वैत क्या है ?


जैसे,
शाम की परछाईयाँ 
धीरे धीरे लुप्त होकर
समिट गयी हो 
अन्धकार के आगोश में 
और मिट गयी हो दूरियां !

जैसे,
फूलों का मकरंद
उसका रंग व् सुगंध 
बह कर घुल जाए 
शीतलता साथ लिए 
बहती बयार में !

जैसे,
माता के गर्भ में 
सोता हुआ बालक
जुडा हो तन जिसका 
अवचेतन मन जिसका
और उसकी आत्मा 
स्वांस खानपान धड़कन व् जीवन
सर्वस्व एक हो !

जैसे ,
प्रियतम की गोद में 
सुध बुध भुला कर
स्वयं को मिटा कर
तन मन और आत्मा से 
विलीन हुयी प्रेयसी
एकाकार प्रेममयी
मौन के शून्य में !

जैसे,
समाधी का योगी 
तिरोहित हुए मै में 
लुप्त हुआ व्यक्तित्व 
विलीन  हो गया हो 
निराकार निर्विकार 
अनंतमयी शून्य में !

जैसे ,
बादल से बिछुड़ी हुयी 
वर्षा की एक बूँद
गिर गयी हो 
किसी महा सागर में 
बन गयी हो 
वह सुमंद्र 
अपने को मिटा कर !!

- स्वामी अनंत चैतन्य 
    लखनऊ


 




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