अद्वैत क्या है ?
जैसे,
शाम की परछाईयाँ
धीरे धीरे लुप्त होकर
समिट गयी हो
अन्धकार के आगोश में
और मिट गयी हो दूरियां !
जैसे,
फूलों का मकरंद
उसका रंग व् सुगंध
बह कर घुल जाए
शीतलता साथ लिए
बहती बयार में !
जैसे,
माता के गर्भ में
सोता हुआ बालक
जुडा हो तन जिसका
अवचेतन मन जिसका
और उसकी आत्मा
स्वांस खानपान धड़कन व् जीवन
सर्वस्व एक हो !
जैसे ,
प्रियतम की गोद में
सुध बुध भुला कर
स्वयं को मिटा कर
तन मन और आत्मा से
विलीन हुयी प्रेयसी
एकाकार प्रेममयी
मौन के शून्य में !
जैसे,
समाधी का योगी
तिरोहित हुए मै में
लुप्त हुआ व्यक्तित्व
विलीन हो गया हो
निराकार निर्विकार
अनंतमयी शून्य में !
जैसे ,
बादल से बिछुड़ी हुयी
वर्षा की एक बूँद
गिर गयी हो
किसी महा सागर में
बन गयी हो
वह सुमंद्र
अपने को मिटा कर !!
- स्वामी अनंत चैतन्य
लखनऊ
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