ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒ तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम् भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
शनिवार, 4 मई 2013
आज की महाभारत
दोनों आँखों पट्टी बाँधी , गांधारी , अभिभावक बन के !
माला परिवार की विखर गयी व टूटे है सारे मनके !!१ !!
धृतराष्ट्र अँधेरे में बैठे , संस्कार दिया न बच्चों को !
करते हैअवज्ञा चीर हरण और भूल चुके है लक्षो को !! 2 !!
लाक्षागृह सी स्थिति घर में , षड़यंत्र , जुआ ,परिहास करे !
मनमानी उन पर करते है ,जो विदुर सरीखी बात करें !! ३!!
कुछ भीम , युधिस्ठिर , अर्जुन हो , जो तोड़ें उनकी जंघाए !
माना की वह थोड़े होंगे , पर शान्ति अनुशासन लाये !! ४ !!
अब आयें कुंती माँ बनकर , पांडवों से बच्चें , फिर से जने !
हर दुःख , अभाव व कुसमय में , तप करके संस्कृतिवान बने !! ५ !!
बच्चो गांडीव गदा ले लो , फिर धर्म युद्ध की बात करो .!
द्रोपदी कृष्ण अभी जिन्दा है , तुम आस रखो विश्वाश करो !! ६ !!
द्रोपदी के आँख न आंसूं हो , कुंती माँ भी अब न रोयें !
घनश्याम का संग करें बेटे , सुख शान्ति से दुनिया सोये !! ७ !!
जब भेद भाव से युक्त द्रोण , जब गुरु शिष्य परंपरा खो देंगे !
अर्जुन भी गुरु को मारेगा , एकलव्य भले ही रो देंगे !! ८ !!
हे भीष्म को गए बूढ़े तुम , चुपचाप तमाशा देखो ना !
वनवास हेतु प्रस्थान करो , अब राज सभा में बैठो ना !! ९ !!
यह, देश , समाज की बाते है , घर घर की यही कहानी है !
पांडव कौरव से युद्ध करें , युग युगांतर दोहरानी है !! १० !!
-------------- अनंत चैतन्य - लखनऊ -------------------
दोनों आँखों पट्टी बाँधी , गांधारी , अभिभावक बन के !
माला परिवार की विखर गयी व टूटे है सारे मनके !!१ !!
धृतराष्ट्र अँधेरे में बैठे , संस्कार दिया न बच्चों को !
करते हैअवज्ञा चीर हरण और भूल चुके है लक्षो को !! 2 !!
लाक्षागृह सी स्थिति घर में , षड़यंत्र , जुआ ,परिहास करे !
मनमानी उन पर करते है ,जो विदुर सरीखी बात करें !! ३!!
कुछ भीम , युधिस्ठिर , अर्जुन हो , जो तोड़ें उनकी जंघाए !
माना की वह थोड़े होंगे , पर शान्ति अनुशासन लाये !! ४ !!
अब आयें कुंती माँ बनकर , पांडवों से बच्चें , फिर से जने !
हर दुःख , अभाव व कुसमय में , तप करके संस्कृतिवान बने !! ५ !!
बच्चो गांडीव गदा ले लो , फिर धर्म युद्ध की बात करो .!
द्रोपदी कृष्ण अभी जिन्दा है , तुम आस रखो विश्वाश करो !! ६ !!
द्रोपदी के आँख न आंसूं हो , कुंती माँ भी अब न रोयें !
घनश्याम का संग करें बेटे , सुख शान्ति से दुनिया सोये !! ७ !!
जब भेद भाव से युक्त द्रोण , जब गुरु शिष्य परंपरा खो देंगे !
अर्जुन भी गुरु को मारेगा , एकलव्य भले ही रो देंगे !! ८ !!
हे भीष्म को गए बूढ़े तुम , चुपचाप तमाशा देखो ना !
वनवास हेतु प्रस्थान करो , अब राज सभा में बैठो ना !! ९ !!
यह, देश , समाज की बाते है , घर घर की यही कहानी है !
पांडव कौरव से युद्ध करें , युग युगांतर दोहरानी है !! १० !!
-------------- अनंत चैतन्य - लखनऊ -------------------
बुधवार, 1 मई 2013
श्रमिक दिवस ( 1 मई ) पर श्रमिकों के चरणों में एक पुष्पांजलि
भरी तपिस में गिट्टी तोडूं , तब पाऊ कुछ कौर निवाला !
मंदिर मस्जिद , गिरजाघर सब , मेरे बनाये बना शिवाला !! १ !!
मंदिर में रखी हर मूरत , मेरे पसीनों से , अभिसिंचित !
लाख करोडो राज कमाते , मुल्ला पंडित पर मै वंचित !!२ !!
सेतु सड़क मै बाँध बनाता , देखे विकास मेरे दम पर !
श्रमिक हूँ , मै मेहनत की खाता , हाथों पैरों के बल पर !! ३ !!
कृपा दया की भीख न मांगूं , न ही मै मजबूर सुनो !
सदियों से वही हाल हमारा , मेहनतकश मजदूर सुनो !! ४ !!
बड़ी बड़ी कोठी कारें , वह कहते वातानुकूलित है !
धरा बिछौना , गगन की चादर तन मन मेरा धूलित है !! ५ !!
नेता , अभिनेता और प्रणेता , जो भी , बड़े समाज के !
कर न सकेगे चिंतन नर्तन , खाए बिना अनाज के !! ६ !!
कृषि कार्य मेरे ही दम पर , मै श्रमिक खेत खलिहानों का !
फिर भी मारा मारा फिरता , पंछी दूर ठिकानों का !! ७ !!
सूखे नही पसीना , पहले , उचित मजदूरी हाथ धरो !
श्रम के महत्त्व का मान रखो , बस इतना सा सम्मान करो !! ८ !!
मेरा श्रम , वैज्ञानिक बुद्धियाँ , साथ साथ अब मिल जाए !
कल, कम्प्यूटर युग का श्रम , नूतन प्रारूप में खिल जाए !! ९ !!
लोहिया गांधी सा नेता हो , इंजिनियर विश्वेशरैय्या सा !
शीर्ष पर लहराएगा तिरंगा , भारत सोन चिरैय्या सा !! १० !!
--------- अनंत चैतन्य - लखनऊ ( ०१ . ०५ . २०१३ ) ----------
भरी तपिस में गिट्टी तोडूं , तब पाऊ कुछ कौर निवाला !
मंदिर मस्जिद , गिरजाघर सब , मेरे बनाये बना शिवाला !! १ !!
मंदिर में रखी हर मूरत , मेरे पसीनों से , अभिसिंचित !
लाख करोडो राज कमाते , मुल्ला पंडित पर मै वंचित !!२ !!
सेतु सड़क मै बाँध बनाता , देखे विकास मेरे दम पर !
श्रमिक हूँ , मै मेहनत की खाता , हाथों पैरों के बल पर !! ३ !!
कृपा दया की भीख न मांगूं , न ही मै मजबूर सुनो !
सदियों से वही हाल हमारा , मेहनतकश मजदूर सुनो !! ४ !!
बड़ी बड़ी कोठी कारें , वह कहते वातानुकूलित है !
धरा बिछौना , गगन की चादर तन मन मेरा धूलित है !! ५ !!
नेता , अभिनेता और प्रणेता , जो भी , बड़े समाज के !
कर न सकेगे चिंतन नर्तन , खाए बिना अनाज के !! ६ !!
कृषि कार्य मेरे ही दम पर , मै श्रमिक खेत खलिहानों का !
फिर भी मारा मारा फिरता , पंछी दूर ठिकानों का !! ७ !!
सूखे नही पसीना , पहले , उचित मजदूरी हाथ धरो !
श्रम के महत्त्व का मान रखो , बस इतना सा सम्मान करो !! ८ !!
मेरा श्रम , वैज्ञानिक बुद्धियाँ , साथ साथ अब मिल जाए !
कल, कम्प्यूटर युग का श्रम , नूतन प्रारूप में खिल जाए !! ९ !!
लोहिया गांधी सा नेता हो , इंजिनियर विश्वेशरैय्या सा !
शीर्ष पर लहराएगा तिरंगा , भारत सोन चिरैय्या सा !! १० !!
--------- अनंत चैतन्य - लखनऊ ( ०१ . ०५ . २०१३ ) ----------
मंगलवार, 30 अप्रैल 2013
प्रार्थनाएं
ह्रदय से उठी पुकार , आर्त हुई !
द्रवित हुई ,संघनित हो , पिघल गई !!
शब्द आंसुओं के साथ साथ बहे !
कर्मकांड दूर खड़े , वहीं ढहे !!
आंतरिक सरोवर का जलज खिला !
परम तत्व आत्म तत्व साथ मिला!!
वैर भाव ओझिल हो दूर बहा !
द्वेष व् दुर्भावना का होश कहा !!
विश्व का बंधुत्व भाव गले लगा !
करुणा का झरना भी उठा जगा !!
आत्म बल उत्कर्षित , हर्षित हो !
दयामयी अभिलाषा पुलकित हो !!
जीवन की ज्योति ऊर्जित प्रखर हुई !
आत्मा भी पोषित हो मुखर हुई !!
नित नूतन प्रेममयी शुभता जगी !
प्राथनाएं मन मंदिर होने लगी !!
*******अनंत चैतन्य - लखनऊ ********
ह्रदय से उठी पुकार , आर्त हुई !
द्रवित हुई ,संघनित हो , पिघल गई !!
शब्द आंसुओं के साथ साथ बहे !
कर्मकांड दूर खड़े , वहीं ढहे !!
आंतरिक सरोवर का जलज खिला !
परम तत्व आत्म तत्व साथ मिला!!
वैर भाव ओझिल हो दूर बहा !
द्वेष व् दुर्भावना का होश कहा !!
विश्व का बंधुत्व भाव गले लगा !
करुणा का झरना भी उठा जगा !!
आत्म बल उत्कर्षित , हर्षित हो !
दयामयी अभिलाषा पुलकित हो !!
जीवन की ज्योति ऊर्जित प्रखर हुई !
आत्मा भी पोषित हो मुखर हुई !!
नित नूतन प्रेममयी शुभता जगी !
प्राथनाएं मन मंदिर होने लगी !!
*******अनंत चैतन्य - लखनऊ ********
सोमवार, 29 अप्रैल 2013
--------एक पत्र रूठे मित्र के नाम --------
हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!
रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे क़दमों में रहता सारा जहाँ !!
भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा तंदुरुस्त रहो !!
गाल फुलाए क्यों बैठे हो गले मिलो !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!
ऐठन रस्सी जैसी , तन पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!
मित्र महान है , सबसे बड़ी अमानत है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है !!
मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे !!
दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों में ज्यो रंग घुले हो घुल मिल के !!
मित्र सुदामा , जैसे थे , घनश्याम के !
कर्ण दुर्योधन , मीत विभीषण राम के !!
मित्र शाश्वत बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से अब कुछ तो पिघलो !!
---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----
हाथ में हाथ ले लो आओ गले लगे !
साथ साथ में खेलो , कटुता दूर भगे !!
रीति प्रीति में बात है जो ,वह और कहा !
मित्र तेरे क़दमों में रहता सारा जहाँ !!
भूल चूक सब माफ़ करो , और मस्त रहो !
करो हास परिहास , सदा तंदुरुस्त रहो !!
गाल फुलाए क्यों बैठे हो गले मिलो !
भाव भंगिमाए ,बदलो,कुछ हिलो डुलो !!
ऐठन रस्सी जैसी , तन पर क्यों भाई !
मुख मंडल पर दुखित मलिनता क्यों छाई !!
मित्र महान है , सबसे बड़ी अमानत है !
दे धोखा जो मित्र को उस पर लानत है !!
मित्र भले ही कम हो , लेकिन बट जैसे !
जड़ गहरी , सघन छाया ,तरुवर जैसे !!
दुःख सुख में संग साथ चले हिलमिल करके !
चित्रों में ज्यो रंग घुले हो घुल मिल के !!
मित्र सुदामा , जैसे थे , घनश्याम के !
कर्ण दुर्योधन , मीत विभीषण राम के !!
मित्र शाश्वत बन जाओ , आओ गले लगो !
जमो नही तुम बर्फ से अब कुछ तो पिघलो !!
---अनंत चैतन्य --लखनऊ -----
रविवार, 28 अप्रैल 2013
-----बुद्धं शरणम गच्छामि ----
``````````घनाक्षरी छंद````````````
( एक )
श्रेष्ठ द्वीप जम्बू द्वीप , मध्य में विशाल राज्य ,
कपिल वस्तु ,लुम्बनी है , नेपाल देश में !!
महारानी महामाया , महाराज सुद्धोदन
जन्मा है एक सुत , तेजोमयि निवेष में !!
नाम सिद्धार्थ श्रेष्ठ , ग्रह नक्षत्र अनुकूल ,
चक्रवर्ती योगाधीश , घुघराले केश में !!
यशोधरा संग हुआ , पाणिग्रहण संस्कार ,
सुत जन्म राहुल सा , सुन्दर सुवेश में !!
(दो )
राज पथ बीच देखा एक दिन विश्मित हो ,
मृत , वृद्ध , दुखी , रोगी , पड़े पशोपेश में !!
काया सूखी जीर्ण शीर्ण दुःख से दुखी मलिन ,
मानवता रहती क्यों ? कष्ट व क्लेश में !!
मन में वैराग्य उठा , चिंतन का भाव उगा
राजगृह त्यागा , गए घने वन देश में !!
फ़लगु नदी के तीर , रम गए बुद्धि धीर,
करते तपस्या बुद्ध , भिक्षुक के वेश में !!
( तीन )
हिन्दुवों में सबसे महान बुद्धिमान हुए
बुद्ध के शरण में सभी को जाना चाहिए !!
व्रत तप जप कर्मकांड से विमुक्ति नहीं
बुद्ध ने दिया जो ज्ञान अपनानाना चाहिए !!
चार आर्य सत्य है ,बताया समझाया ठीक
दुःख क्या है ?क्यों है? समझ आना चाहिए !!
भव पार कैसे करे , क्या है निर्वाण मार्ग
निज प्राण तत्त्व को , यही सुझाना चाहिए !!
( चार )
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन अशोक ने भी
देशना प्रचार हेतु दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को !!
----अनंत चैतन्य - लखनऊ ------
``````````घनाक्षरी छंद````````````
( एक )
श्रेष्ठ द्वीप जम्बू द्वीप , मध्य में विशाल राज्य ,
कपिल वस्तु ,लुम्बनी है , नेपाल देश में !!
महारानी महामाया , महाराज सुद्धोदन
जन्मा है एक सुत , तेजोमयि निवेष में !!
नाम सिद्धार्थ श्रेष्ठ , ग्रह नक्षत्र अनुकूल ,
चक्रवर्ती योगाधीश , घुघराले केश में !!
यशोधरा संग हुआ , पाणिग्रहण संस्कार ,
सुत जन्म राहुल सा , सुन्दर सुवेश में !!
(दो )
राज पथ बीच देखा एक दिन विश्मित हो ,
मृत , वृद्ध , दुखी , रोगी , पड़े पशोपेश में !!
काया सूखी जीर्ण शीर्ण दुःख से दुखी मलिन ,
मानवता रहती क्यों ? कष्ट व क्लेश में !!
मन में वैराग्य उठा , चिंतन का भाव उगा
राजगृह त्यागा , गए घने वन देश में !!
फ़लगु नदी के तीर , रम गए बुद्धि धीर,
करते तपस्या बुद्ध , भिक्षुक के वेश में !!
( तीन )
हिन्दुवों में सबसे महान बुद्धिमान हुए
बुद्ध के शरण में सभी को जाना चाहिए !!
व्रत तप जप कर्मकांड से विमुक्ति नहीं
बुद्ध ने दिया जो ज्ञान अपनानाना चाहिए !!
चार आर्य सत्य है ,बताया समझाया ठीक
दुःख क्या है ?क्यों है? समझ आना चाहिए !!
भव पार कैसे करे , क्या है निर्वाण मार्ग
निज प्राण तत्त्व को , यही सुझाना चाहिए !!
( चार )
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन अशोक ने भी
देशना प्रचार हेतु दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को !!
----अनंत चैतन्य - लखनऊ ------
--------------कृपा----------------
``````````घनाक्षरी छंद````````````
पानी है कृपा तो निज भावनाए शुद्ध रहे ,
सुचिता पवित्रता को नित अपनाना है !!
मनमानी व नादानी , छोड़ के सरल बने ,
भाव उपकारी हो , शपथ यह खाना है !!
प्रज्ञा युत चेतना , प्रखरता हो सविता सी ,
साधना में रत रहे , तिमिर मिटाना है !!
सेवा भाव कर्म बने , सृष्टी के सहायक हो
सतत आराधना का बीड़ा भी उठाना है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ---
``````````घनाक्षरी छंद````````````
पानी है कृपा तो निज भावनाए शुद्ध रहे ,
सुचिता पवित्रता को नित अपनाना है !!
मनमानी व नादानी , छोड़ के सरल बने ,
भाव उपकारी हो , शपथ यह खाना है !!
प्रज्ञा युत चेतना , प्रखरता हो सविता सी ,
साधना में रत रहे , तिमिर मिटाना है !!
सेवा भाव कर्म बने , सृष्टी के सहायक हो
सतत आराधना का बीड़ा भी उठाना है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ---
सोमवार, 15 अप्रैल 2013
केवट राम संवाद
( छंद )
गंगा जी के घाट खड़ा , जिद पे निषाद अडा !
बोलता है कड़ा कड़ा , पार न उतारूंगा !!
जनता हूँ भली भांति , जादूगरी में है ख्याति !
केवट की मेरी जाति , पाँव ही पखारूँगा !!
कोई तकरार न है , पाँव दो पखारना है... !
यदि शर्त माने प्रभु , बात नही टारूगा !!
बात सुन हसें राम जैसा चाहे करे काम !
मानता हूँ शर्त लाओ , पानी पैर डालूँगा !!
***********
काठ का कठौता भर , दोनों पाँव धोई कर !
पिया जल चुल्लू भर , सबको भी देना है !!
सीता व् लखन पाँव , धोया बड़े प्रेम भाव !
लायूं पास अभी नाव , फिर नाव खेना है !!
गंगा पार नाव गयी , मुंदरी उतार लई !
केवट ने कहा न , मंजूरी मुझे लेना है !!
तुम मुझे त़ार देना , भाव से उबार लेना !
तुम्हे मेरी नाव खेना , शरण में लेना है !!
- -----अनंत चैतन्य - लखनऊ ----- --
मंगलवार, 26 मार्च 2013
--- मै फूल हूँ----
मै फूल हूँमेरे कुछ सपने है
एक प्रेमी है
चुपके से आता है
आलिंगन कर मेरी आत्मा की सुगंध को
चुरा ले जाता है
विखेर देता है
गलियों , आगन , और घर घर में
किन्तु लोगों को मेरा खिलना रास न आता है
जीने क्यों मुझे जीने नही देते है ?
पूजा में , प्यार में
श्रंगार में , हार में
व्यौहार में , त्यौहार में
असमय ही मौत के घाट उतार देते है
जीने क्यों मुझे जीने नही देते है ?
गमलो से
गलियों से
बाग़ व् बगीचों से
प्यार भरी नजरों से
बस देखने के सिवा मेरा क्या दोष ?
चाँद पैसों के लिए धर्म के दरवाजों पर
अधर्मी बन बेच देते है ..
जीने क्यों मुझे जीने नही देते है ?
अपनी खुशियों के लिए
तोड़ने से पहले
मेरी गर्दन मरोड़ने से पहले
एक बार रुको..सोचो..प्यार से देखो..
जीयों और जीने दो !!
--अनंत चैतन्य - लखनऊ ---
नौका विहार
( एक घनाक्षरी छंद )नीरव निशा में नीली यमुना के नीर तीर
करती नौका विहार , संग वृज रानी है !!
नीले नीले अम्बर की नीलिमा निहारे नाथ
श्याम देत नील मणि , नेग की निशानी है !!
नूपुर पहिर नाथ , नाच दिखरावत है
नैनन निहाल नैन , मारि मुस्कानी है !!
नैन ललचावै , दिखरावे नखरैल भाव
नन्द के नंदन को , चिढावे राधारानी है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ----
सोमवार, 25 मार्च 2013
काशीनाथ की होली
( एक घनाक्षरी छंद )
उमा संग काशीनाथ, होली खेले गंगा घाट
अंग में लगाये भस्म , भंग भी चढ़ाये है !!
शमशान घाट बीच , शिवा संग बैठे शिव
भूत प्रेत नाचे सब , शिव मुस्काये है !!
रंग और भंग बीच , गंग भी तरंगित है
गणपति गणेशजी , ढुमका लगाये है !!
डमकावत डमरू , बम बम महानाद
विश्वनाथ बाबा होली , टोली को खिलाये है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ----
उमा संग काशीनाथ, होली खेले गंगा घाट
अंग में लगाये भस्म , भंग भी चढ़ाये है !!
शमशान घाट बीच , शिवा संग बैठे शिव
भूत प्रेत नाचे सब , शिव मुस्काये है !!
रंग और भंग बीच , गंग भी तरंगित है
गणपति गणेशजी , ढुमका लगाये है !!
डमकावत डमरू , बम बम महानाद
विश्वनाथ बाबा होली , टोली को खिलाये है !!
---अनंत चैतन्य - लखनऊ ----
गुरुवार, 7 मार्च 2013
( दो दिलों की कहानी, जो मिल न पाए --एक गीत में )
----तेरे सिवा कुछ याद न आये , घुप्प अँधेरे में ----
नही पड़ा कभी प्रीत प्रेम के , किसी झमेले में !
पहली बार मिले थे उससे , नितांत अकेले में !!
याद हमें जब बैठे संग संग , घर खपरेले में !
हम दोनों में नेह भाव था , ज्यो गुरु चेले में !!
देखी प्रेम की बहती नदिया , उस अलबेले में !
पता नही कब एक हुए दिल , प्रेम के खेले में !!
क्रम एह चलता रहा मिलन का , शाम सबेरे में !
हम दोनों फिर बिछड़ गए , रूढ़िवादी मेले में !!
छोटा उसका हाथ साथ , उस भीड़ के रेले में !
कमल तभी कुम्भलाया उस , पोखर मटमैले में !!
आशाओं का किरण दिखे , हर दिन के उजेले में !
तेरे सिवा कुछ याद न आये , घुप्प अँधेरे में !!
-- --अनंत चैतन्य - लखनऊ ---
गोपियों की चीर हरने वाले श्याम !!
तुम कब आओगे ?
मेरे भी वस्त्र चुराओगे ??
निशा रुपी सरोवर में
निद्रा स्नान करते समय
काम क्रोध मद लोभ में रगें, सिले मेरे कपडे
जो छिपा देता हूँ अपनी ही काया में
और सुबह नींद से बाहर आकर
अहंकारी अंगडाईयों के साथ
पहन लेता हूँ हरदिन
उन्हें कब चुरावोगे ,
बोलो , तुम मेरे वस्त्र कब चुरावोगे
कब मुझे उस बाल रूप
वस्त्र विहीन
मूल स्वरुप से मिलाओगे ,
हे घनश्याम !!
बोलो मेरे वस्त्र कब चुराओगे
चीर हरो घनश्याम , हमारी पीर हरो !!
-----अनंत चैतन्य - लखनऊ -----
मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013
घनाक्षरी छंद
भगवान बुद्ध
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन अशोक ने भी
देशना प्रचार हेतु दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को !!
----अनंत चैतन्य - लखनऊ -------
भगवान बुद्ध
करुणा के मीत , प्रीत प्रेम के पुजारी बुद्ध
बोधि बृक्ष छाया तलेज्ञान मिला जिनको !!
शांति व् सौंदर्य सौम्य सभ्यता की शिक्षा देके
राजा भिक्षु बना ,दिया ध्यान जन जनको !!
हिंसा से अहिंसा का पुजारी बन अशोक ने भी
देशना प्रचार हेतु दान किया तन को !!
करुणा व् बोध की अवस्था देके मुक्त किया ,
दस्यु अंगुल मल ने छोड़ दिया बन को !!
----अनंत चैतन्य - लखनऊ -------
रौशनी की एक किरण को
बो दिया अंतःकरण में
वह बीज
बन गया है अब
चमकदार सूर्य
और जुड़ गया है
खुदा के नूर से .
अंतरतम के महाकाश में
वह महा प्रकाश
अलौकिक ऊर्जा लिए
प्रतिपल जगमगाता , झिलमिलाता
घट रहा है घट में
अनंत , चैतन्य पूर्ण जागरण
अब मुझे बाहर की रौशनी की क्या जरूरत
क्योकि
उसकी चमक में भटका हूँ जन्मो से
वाह्य चमक में सो गया था
हताश व् निराश ..
अब तो बस अंतर में
झर रहा है पुंज प्रकाश
----अनंत चैतन्य , लखनऊ ------
बो दिया अंतःकरण में
वह बीज
बन गया है अब
चमकदार सूर्य
और जुड़ गया है
खुदा के नूर से .
अंतरतम के महाकाश में
वह महा प्रकाश
अलौकिक ऊर्जा लिए
प्रतिपल जगमगाता , झिलमिलाता
घट रहा है घट में
अनंत , चैतन्य पूर्ण जागरण
अब मुझे बाहर की रौशनी की क्या जरूरत
क्योकि
उसकी चमक में भटका हूँ जन्मो से
वाह्य चमक में सो गया था
हताश व् निराश ..
अब तो बस अंतर में
झर रहा है पुंज प्रकाश
----अनंत चैतन्य , लखनऊ ------
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